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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण ३८७ (२६) शौरसेनी में सर्वज्ञ और इङ्गितज्ञ शब्दों के अन्त्य ज्ञ के स्थान पर ण आदेश होता है । यथा सव्वण्णो < सर्वज्ञः– संयुक्त रेफ का लोप, व को द्वित्व और ज्ञ के स्थान पर ण्ण, विसर्ग को ओव इंगिअण्णो इङ्गितज्ञ :- मध्यवर्ती का लोप, अ स्वर शेष और ज्ञ के स्थान पर or, विसर्ग का ओत्व | (२७) शौरसेनी में स्त्री शब्द के स्थान पर इत्थी आदेश होता है । इत्थी स्त्री । (२८) शौरसेनी में इव के स्थान पर विअ आदेश होता है । विअ इव | (२९) शौरसेनी में विकल्प से एव के स्थान जेम्ब आदेश होता है। जेव्व एव । (३०) आश्चर्य शब्द के स्थान पर अच्चरिम आदेश होता है । यथाअच्चरिअं << आश्चर्यम्; अहह अच्चरिअं अच्चरिअं < अहह आश्चर्यमाश्चर्यम् । शौरसेनी के शब्दरूप और (३१) शौरसेनी में अत से पर में आनेवाली ङसि विभक्ति के स्थान पर आदो आदु आदेश होते हैं तथा शब्द के टि (अ) का लोप होता है । (३२) शौरसेनी में नपुंसक लिङ्ग में वर्तमान शब्दों से पर में आनेवाले जस और शस् के स्थान में णि आदेश तथा पूर्व स्वर को दीर्घ भी होता है । प्र० पढमा द्वि० बीआ ( ३३ ) शौरसेनी में सर्वनाम शब्दों से पर में आनेवाली —- सप्तमी एकवचन की ङि विभक्ति के स्थान में सिम्मि आदेश होते हैं । शौरसेनी के विभक्ति चिन्ह एकवचन ओ (३४) जस् सहित अस्मद् के स्थान में वअं और अम्हे ये दोनों रूप शौरसेनी होते हैं । १. सर्वज्ञेङि गतज्ञयोगंः १२८ वर० । ३. इवस्य विश्र १२।२४ वर० । ५. श्राश्वयंस्याच्चरिनं १२।३० वर० । यथा + यथा बहुवचन यथा- आ आ, ए २. स्त्रियामित्थी १२/२२ वर० । ४. एवस्य जेव्व १२।२३ वर० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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