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________________ २६६ अभिनव प्राकृत-व्याकरण कृष्-कृ = करि—करिस + अ = करिस + इ = करिसह ८ कर्षति मृष–मरिस + अ = मरिस + इ = मरिसह ८ मृष्यते वृष --वरिस + अ = वरिस + इ = वरिसइ< वर्षति हृष-हरिस + अ = हरिस + इ = हरिसइ < हृष्यति ( २० ) इकारान्त और उकारान्त धातुओं में इकार के स्थान पर ए और उकार के स्थान पर ओ होता है । यथा नी-ने + इ = नेइ नयति, नैति < नयन्ति उड्डी-उड्डे + इ = उड्डेइ < उड्डयते, उड्डेति < उड्डयन्ते ( २१ ) कुछ व्यञ्जनान्त धातुओं के उपान्त्य स्वर को दीर्घ होता है । यथारुष-रुस-रूस + इ = रूसइ < रुष्यति तुष-तुस --तूस + इ = तूसह तुष्यति शुष-सुस–सूस + इ = सूसइ< शुष्यति पुष–पुस -पूस + इ = पूसइ< पुष्यति शिष = सीस + इ = सीसइ र शिष्यते। ( २२ ) धातुओं के नियत स्वर के स्थान पर प्रयोगानुसार अन्य स्वर होता है । हवइ-हिवइ भवति चिणइ-चुणइ चिनोति सदहणं-सदहाणं श्रद्दधानम् धावइ–थुवइ <धावति दा-दे-देह < ददाति, दाति ला-ले-लेइ < लाति विहा–विहे-विहेइ ८ विदधाति,विभाति ब्रू-वे-बेमि < प्रवीमि ( २३ ) कुछ धातुओं के अन्त्य व्यञ्जन को द्वित्व होता है। यथाफुडइ, फुट्टइ< स्फुटति चलइ, चल्लइ< चलति निमीलइ, निमिल्लइ < निमीलति । संमोलइ, उम्मिल्लइ < सम्मीलति परिअट्टइ<पर्यटति सकारशक्नोति तुइ < त्रुटति नहइ ८ नटति नस्सइ र नश्यति कुप्पइ < कुप्यति, नृत्यति (२४) कुछ धातुओं में संस्कृत के विकरण जुड़ जाने पर द्य के स्थान में ज. आदेश होता है । यथा संपज्जइ < सम्पद्यते; सिजइ ८ स्विधति; खिजइ< खिद्यते जिम्मइ
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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