SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४५ अभिनव प्राकृत-व्याकरण (४) समृद्धि अर्थ में—मदाणं समिद्धि-सुमई । ( ५ ) अभाव अर्थ में—मछिकाणं अभाओ-निम्मछिकं । ( ६ ) अत्यय-नाश में हिमस्स अच्चओ-अइहिमं । (७) असम्प्रति-अनौचित्य अर्थ में -निदा संपइ न जुज्जइ-अइनिई। (८) यथा का भाव—योग्यता-रूवस्स जोग्गं—अणुरूपम् (अनुरूपम् )। वीप्सा-नयरं नयरं ति–पइनयरं ( प्रतिनगरम् )। , -दिणं दिणं ति–पइदिणं ( प्रतिदिनम् )। , -घरे घरे ति–पइघरं ( प्रतिगृहम् )। अनतिक्रम—सत्तिअणइक्कमिअ-जहाविहि (यथाविधि)। , ,, -सत्तिं अणइक्कमिऊण-जहासत्ति (यथाशक्ति)। (९) आनुपूर्व्य-क्रम--जेट्ठस्स अणुपुत्वेण-अणुजेडं ( अनुज्येष्टम् ) । (१०) यौगपद्य–एक साथ होना-चक्केण जुगव-सचकं ( सचक्रम् )। (११) सम्पत्ति-छत्ताणं संपइ-सछत्तं ( सक्षत्रम् )। (२) तत्पुरुष (तप्पुरिस) (. १ ) उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः - जिसमें उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता रहती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। राइणो पुरिसो = रायपुरिसो में उत्तरपद पुरुष की प्रधानता है। तात्पर्य यह है कि तत्पुरुष समास में प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य रहता है, अत: विशेष्य की प्रधानता रहने के कारण इसमें उत्तरपद की प्रधानता मानी जाती है। तत्पुरुष समास के आठ भेद हैं—प्रथमा तत्पुरुष, द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष, चतुर्थी तत्पुरुष, पञ्चमी तत्पुरुष, षष्ठी तत्पुरुष, सप्तमी तत्पुरुष और अन्य तत्पुरुष । (१) प्रथमा तत्पुरुष (पढमा तप्पुरिस) (१) पुन्च, अवर, अहर और उत्तर प्रथमान्त पद अपने अवयवी षष्ठयन्त के साथ एकाधिकरण में समास को प्राप्त होते हैं। यथा-पुव्वं कायस्स = पुवकायो, अवरं कायस्स = अवरकायो, उत्तरं गामस्स = उत्तरगामो। ___ (२) द्वितीया तत्पुरुष (वीया तप्पुरिस) ( २ ) सिअ, अतीत, पडिअ, गअ, अइअत्थ, पत्त और आवण्ण शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति के आने पर द्वितीया-तत्पुरुष समास होता है। यथा
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy