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________________ २४२ अभिनव प्राकृत-व्याकरण - (२ ) हेउ शब्द के प्रयोग में जो शब्द कारण या प्रयोजन रहता है, वह और हेउ शब्द दोनों ही षष्ठी में रखे जाते हैं। यथा-अन्नस्स हेउस्स वसइअन्न प्राप्ति के प्रयोजन से रहता है। कस्स हेउस्स वसइ--किस कारण रहते हो । ( ३ ) द्वितीया-तृतीयादि विभक्ति के स्थान पर पष्टी विभक्ति होती है।' यथा-सीमाधरस्स वन्दे--सीमाधरं वन्दे; तिस्सा मुहस्स भरिमो--तस्या मुखं भरामः; धणस्स लुद्धो-धनेन लुब्धः; तेसिमेअमणाइण्णं -तैरेतदनाचरितम् ; चिरस्स मुक्का--चिरेण मुक्ता; इअराइं जाण लहुअक्खराइं पायन्तिमिल्ल सहिआण--पादान्तेन सहितेभ्यः इतराणि। ७. अधिकरण कारक-कर्ता और कर्म के द्वारा किसी भी क्रिया का आधार अधिकरण कहलाता है। आधार के तीन भेद हैं--औपश्लेषिक, वैषयिक और अभिव्यापक। जिसके आधेय का भौतिक संश्लेष हो, उसे औपश्लेषिक आधार कहते हैं । जैसे--कडे आसइ कागो-यहां चटाई से बैठनेवाले का भौतिक संश्लेष प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। जिसके साथ आधेय का बौद्धिक संश्लेष हो, उसे वैषयिक आधार कहते हैं । यथा--मोक्खे इच्छा अस्थि-इच्छा का मोक्ष में अधिष्ठित होना बौद्धिक संश्लेष है। जिसके साथ आधेय का व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध हो, उसे अभिव्यापक कहते हैं । यथा--"तिलेसु तेलं' में तैल तिल के किसी एक भाग में नहीं रहता है, बल्कि समस्त तिल में व्याप्त रहता है। (१) अधिकरण तथा दूर एवं अन्तिक अर्थ वाले शब्दों में सप्तमी विभक्ति होती है। कडे आसइ कागो; गामस्स दूरे अन्तिए वा। (२) सामी, ईसर, अहिवइ, दायाद, साखी, पडिहू और पसूअ इन सात शब्दों के योग में षष्ठी और सप्तमी ये दोनों ही विभक्तियां होती हैं । यथा-- गवाणं गोसु वा सामी, गवाणं गोसु वा पसूओ। ( ३ ) यदि किसी वस्तु का अपने समुदाय की अन्य वस्तुओं में से किसी विशेषण द्वारा वैशिष्ट्यनिर्देश किया जाय तो समुदायवाचक शब्द सप्तमी अथवा षष्टी विभक्ति में रखा जाता है। यथा-कइसु कईणं वा हरिचन्दो सेट्रो-कवियों में हरिश्चचन्द्र सबसे बड़े कवि है। गवाणं गोसु वा किसणा बहुक्खीरा-गायों में काली गाय बहुत दूध देनेवाली है। छत्ताणं छत्तेसु वा गोइन्दो पडु--विद्यार्थियों में गोविन्द श्रेष्ठ है। १. क्वचिद् द्वितीयादे; ८।३।१३४-द्वितीयादीनां विभक्तीनां स्थाने षष्ठी भवति क्वचित् ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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