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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण २३५ १. कर्त्ता - क्रिया के द्वारा जिस संज्ञा के सम्बन्ध में विधान किया जाता है, उस संज्ञा के रूप को कर्त्ता कारक कहते हैं'। जैसे - रामो 'भाईअइ' - में 'झाईअड' क्रिया राम के सम्बन्ध में विधान करती है कि राम ध्यान करता है। 1 प्रथमा विभक्ति के नियम ( १ ) प्रातिपदिकार्थ - शब्द का मात्र अर्थ, लिङ्गमात्र, परिमाणमात्र अथवा वचन मात्र बतलाने के लिए प्रथमा विभक्ति होती है । प्रातिपदिक शब्द का अर्थ-“नियतोपस्थितिकः प्रातिपदिकार्थ: " - जिस शब्द की जिस अर्थ के साथ नियम से उपस्थिति हो, उसे प्रातिपदिकार्थ कहते हैं । प्रातिपदिकार्थ में प्रथमा विभक्ति होती है । यथा - जिणो, वाऊ, पज्जुणो, सयंभू, गाणं आदि । संस्कृत के समान प्राकृत में भी शब्द में जब तक प्रत्यय नहीं लगता, तब तक उसका अर्थ नहीं जाना जा सकता है । प्रातिपदिक ( Crude form ) में सुप् आदि विभक्तियों को जोड़ने से ही अर्थ प्रकट होता है । उदाहरण के लिए यों समझना चाहिए कि त्रिभक्ति रहित देव शब्द का उच्चारण करें तो यह निरर्थक होगा । जब 'देवो' उच्चारण करते हैं तभी इस शब्द का अर्थ 'देव' ने यह प्रकट होता है । इसलिए संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में विभक्ति प्रत्यय जोड़े जाते हैं 1 1 लिङ्गमात्र में - तडो, तडी, तड; परिमाणमात्र में - --वजन मात्र का ज्ञान कराने के लिए - दोणोव्वीही - यहाँ प्रथमा विभक्ति से व्रीहि का द्रोण रूप परिमाण विदित होता है । वचनमात्र—एको, बहू आदि । ( २ ) सम्बोधन में भी प्रथमा विभक्ति होती है । यथा हे देवो, हे देवा, हे जुणा । २. कर्म - जिस पदार्थ पर क्रिया के व्यापार का फल प्राप्त होता है; उस पदार्थ से सूचित होनेवाली संज्ञा के रूप को कर्म कारक कहते हैं। किसी वाक्य में प्रयोग किये गये पदार्थों में से जिसको कर्त्ता सबसे अधिक चाहता है, उसे कर्म कहते हैं । 3 अर्थात् कर्त्ता के लिए जो अत्यन्त ईप्सित अभीष्ट है, उसीकी कर्म संज्ञा होती है । जैसे -- 'मासेसु अस्सं बंधई' उड़द के खेत में घोड़े को बांधता है, इस वाक्य में बाँधने १. स्वतन्त्रः कर्त्ता २२२. हे० । २. प्रातिपदिकार्थंलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा २ | ३ | ४६ पा० । ३. कत्तुरीप्सिततमं कर्म १।४।४६. पा० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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