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त-भाणुणा च० - भाणुणो, भाणुस्स पं० - भाणूणो, भाणुत्तो, भाणूओ भाणू, भाणूर्हितो छ० - भाणुणो, भाणुस्स
स-- भाणुंसि, भाणुम्मि
',
सं० - हे भाणु, हे भाणू
एकवचन
अभिनव प्राकृत व्याकरण
प०- वाऊ
वी० - वाउं
त-वाउणा
च० - वाउणो, वाउस्स पं० - वाउणो, वाउत्तो, वाउओ वाऊ, वाऊहिंतो
छ० - वाउणो, वाउस्स
स० - वाउंसि, वाउम्मि
सं०-हे वाउ, हे वाऊ
भागृह, भाहिँ, भाणू हिं
भाणूण, भाजू
भाणुत्तो, भाणूओ, भाणूड, भाणूहितो,
भाणूस तो
भाभा
उकारान्त वाउ (वायु) शब्द
बहुवचन
वाणो, वाउचो, वाउओ, वाऊ
वाणो, वाऊ
वाहि, आऊहिँ, वाऊहिं वाऊणं
वाऊण,
वाउत्तो, वाऊओ, वाऊउ, वाऊहितो,
वाऊसुतो
भाणूस, भाणूसु
हे भाणुणो, हे भाणवो, हे भाणओ,
हे भाणउ
वाऊण, वाऊणं
वासु, वाऊ
हे वाउलो, हे वाउवो; हे वाउसो, हे वाऊ
इसी प्रकार जउ (यदु ), धम्मण्णु (धर्मज्ञ), सव्वण्णु (सर्वज्ञ) दवण्णु (दैवज्ञ ), गउ (गो), गुरु, साहु (साधु), बन्धु, वपु ( वपुष् ), मेरु, कारू, धणु ( धनुष ), सिंधु, के (केतु), विज्जु (विद्युत), राहु, संकु (शङ्कु), उच्छु (इक्षु), पवासु ( प्रवासिन् ), वेल (वेगु), सेउ (सेतु), मच्चु (मृत्यु), खरुपु ( खलपू ), गोत्तभु (गोत्रभू), सरभु (शरभू), अभिभु ( अभिभू ) और सयंभु (स्वयम्भू) आदि शब्दों के रूप चलते हैं । प्राकृत में खलपू, गोत्तभू, सरभू, अभिभू, और संयभू शब्द विकल्प से हस्व उकारान्त होते हैं । अतः इन शब्दों के रूप वाउ के समान भी चलते हैं ।
ईकारान्त और ऊकारान्त शब्दों के रूप भी इकारान्त और उकारान्त शब्दों के समान होते हैं । हेमचन्द्र ने दीर्घ ई, ऊ के लिए हस्व का विधान किया है और संबोधन के एकवचन में अपने नियम को वैकल्पिक माना है ।