________________
अभिनव प्राकृत-व्याकरण
१५७
त०-इसिणा
इसीहि, इसीहि, इसीहिं च०-इसिणो, इसिस्स
इसीण, इसीणं पं०-इसिणो, इसित्तो, इसीओ, इसीउ, इसित्तो, इसीओ,
इसीहितो, इसीसुतो इसीउ, इसीहितो, इसीसुतो छ०-इसिणो, इसिस्स. इसीण इसीणं स०-इसिसि इसिम्मि इसीसु, इसी सं०-हे इसि, हे इसी हे इसउ, हे हसओ, हे इसिणो, हे इसी
इकारान्त अग्गि ( अग्नि) एकवचन
- बहुवचन प०-अग्गी
अग्गउ, अग्गओ, अग्गिणो. अग्गी वी०-अग्गि
अग्गिणो, अग्गी त०-अग्गिणा
अग्गीहि. अग्गीहि, अग्गीहिं च०-अग्गिणो, अग्गिस्त अग्गीण, अग्गीणं पं०-अग्गिणो, अग्गित्तो, अग्गीओ, अग्गित्तो, अग्गीओ, अग्गीउ,
अग्गीउ, अग्गिहितो अग्गिहितो, अग्गिसंतो छ०-अग्गिणो, अग्गिस्स अग्गीण, अग्गीणं स०-अग्गिसि, अग्गिम्मि अग्गीसु, अग्गीसु सं०-हे अग्गि, हे अग्गी हे अग्गउ, हे अग्गओ, हे अग्गिणो,
हे अग्गी
इसी प्रकार मुणि (मुनि), बोहि (बोधि), संधि, रासि (राशि), रवि, कइ (कवि) कवि (कपि), अरि, तिमि, समाहि (समाधि), निहि (निधि), विहि (विधि), दंडि ( दण्डिन् ) करि ( करिन् ), तवस्सि ( तपस्विन् ), पाणि (प्राणिन् ), पहि (प्रधी), सहि (सुधी) आदि शब्दों के रूप चलते हैं। प्राकृत में पहि, सुहि, गामणि प्रभृति कुछ शब्द हस्त्र और दीर्घ इकारान्त माने गये हैं। अत: विकल्प से इनके रूप अग्गि के समान भी चलते हैं।
एकवचन
उकारान्त भाणु (भानु) शब्द
बहुवचन भाणुणो, भाणवो, भाणओ, भाणउ, भाणू भाणुणो, भाणू
प०-भाण वी०-भाएं