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________________ सरस्वती का पौराणिक नदी-रूप ५३ पृथिवी-सिञ्चन परोपकार के लिए होता है । पृथिवी के सिञ्चन द्वारा वे मानवसमृद्धि का वर्धन करती हैं । माँ का अपने बच्चों की भाँति वे मानव-जाति का निर्विशेष पालन-पोषण करती हैं । सम्भवतः इन्हीं कारणों से उन्हें 'जगन्माता' (विश्वस्य मातरः) कहा गया है । ये सम्बोधन प्राय: सब नदियों को लक्ष्य करके कहे गये हैं। सरस्वती के प्रति कथन-विशेष निम्नलिखित हैं। पुराणों में नदियों का विभाजन प्रवाह के दृष्टिकोण से दो रूपों में किया गया है -एक जी केवल वर्षा-काल में प्रवाहित होने वाली हैं तथा दूसरी जो सतत्प्रवाहिनी हैं। सरस्वती दूसरी कोटि में आती है । वामनपुराण का कथन है कि केवल सरस्वती ही 'सतत्प्रवाहिनी' है । इसी गति-विशेष के कारण सम्भवतः उसे 'प्रवाहसंयुक्ता, 'वेगयुक्ता', 'स्रोतस्येव' जैसी पौराणिक उपाधियों से विभूषित किया गया है । ऋग्वैदिक विशेषण 'नदीतमा' से यह ज्ञात होता है कि सरस्वती तत्कालिक 'सर्वश्रेष्ठ' नदी थी। पुराणों ने इस नदी की वैदिक मर्यादा की रक्षा की है। यहाँ बारम्बार उसे 'महानदी से सम्बोधित किया गया है । महानदियों की कुछ अपनी निजी विशेषताएँ होती हैं, जो तदेतर (छोटी) नदियों में नहीं होती हैं । छोटी नदियाँ या तो बड़ी नदियों से निकलती हैं अथवा सीधे पर्वतों से उद्भूत होती हैं। बड़ी नदियों से निकलने पर वे उनकी सहायक नदियाँ कहलाती हैं, अन्यथा-रूप से पर्वतों से निकल कर बड़ी नदियों में विलीन हो जाती हैं । दोनों ही दशाओं में उनका निजी अस्तित्व अल्पकालिक अथवा अल्पमार्गयावत् होता है, परन्तु बड़ी नदियों की दशा भिन्न होती है । वे पर्वतों से निकल कर अन्ततोगत्वा समुद्र मे जा मिलती हैं, अत एव 'समुद्रगा'" जैसी उनकी उपाधि युक्तियुक्त ही है। अन्यत्र कहा जा चुका है कि सरस्वती सर्वप्रथम हिमालय से निकलकर राजस्थान के समुद्र में गिरा करती थी, परन्तु भू-परिवर्तन के कारण उसका मार्ग बदल गया । परिवर्तित स्थिति में राजस्थान के समुद्र के बजाय अरब सागर में गिरने लगी। पुराणों में एतद्विषयक बड़ा सुन्दर सङ्केत मिलता है। सरस्वती की इस दशा-विशेष १. पृ०, २१६ २. वही, पृ० २२३, “वर्षाकालबहाः सर्वा वर्जयित्वा सरस्वती" ३. वामनपुराण, ३४८ ४. वही, ३३१ ५. वही, ३७।२२ ब्रह्मवैवर्तपुराण, २७ ७. ऋग्वेद, २।४१।१६ ८. वामन पुराण, ३७।३१, ४०।८; भागवतपुराण, ५।१६।१८ ६. डॉ० रामशंकर भट्टाचार्य, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० २३२
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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