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________________ -६– सरस्वती का पौराणिक नदी-रूप मानव-जीवन में नदियों एवं पर्वतों का सदैव से महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । इन्होंने मनुष्य जाति को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है । सामाजिक, भौगोलिक, धार्मिक, ऐतिहासिक आदि अनेक दृष्टिकोणों से इनकी महत्ता है। नदियाँ हमारी न केवल भौतिक आकाक्षाओं की पूरक रही हैं, अपितु उनसे एक दिव्य संदेश मिलता रहा है और वे 'दिव्य प्रेरणा का स्रोत' समझी जाती रही हैं । सर्वात्मदर्शी ऋषियों ने उनमें जीवन का साक्षात्कार किया है तथा परम्परा से हम भी तद्वत् आभास करते रहे हैं । वैदिक साहित्य के अध्ययन से हमें यह ज्ञात होता है कि आदि ऋषि आद्यन्त स्थूल प्रकृतिवादी नहीं थे, प्रत्युत् प्रकृति के प्रति उनका अपना एक विशेष प्रकार का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण था । इस दृष्टिकोण के आधार पर उन्होंने प्रकृति के भिन्न-भिन्न पदार्थों को भिन्न-भिन्न प्रतीकों का रूप दे रखा था । फलतः उनसे बाह्य एवं आन्तरिक प्रभाव की अपेक्षा रही । स्थूल प्रकृति के भीतर मस्तिष्क एवं आत्मा' की सत्ता है । वैज्ञानिक युग में अन्वेषणों के आधार पर सिद्ध किया जा चुका है कि पेड़-पौधों में जीवन एवं अनुभूति-भावना है । जब जल अथवा जलाशयों की उपासना 'सन्तति' अथवा किसी 'वरदान' की आशा से की जाती है, तब अप्रत्यक्ष रूप से हम उनमें जीवत्व स्वीकार कर ही लेते हैं । जीवत्व की यह कल्पना और साकार हो उठती है, जब हम आदि काल से ही नदी-विशेष को तन्नामक देवी- विशेष से प्रतिष्ठित करते हैं । ऐसी स्थिति में उस देवी को उस नदी - विशेष की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है । सरस्वती को वैदिक काल से ही ऐसी प्रतिष्ठा प्राप्त रही हैं । ऋग्वेद में 'दिव्य जल' (दिव्या आपः ) का वर्णन बहुधा हुआ है । यह दिव्य जल सामान्य रूप से सभी नदियों का वाचक है, जिनमें सरस्वती प्रधान है ।" पुराणों में सरस्वती की इस वैदिक मर्यादा की न केवल प्रतिष्ठा १. श्री अरविन्दो, नॉन द वेद (पाण्डिचेरी, १९५६), पृ० १०४ - १०५ २. ऋग्वेद, १०।३०।१२, सरस्वती ने 'वधूयश्व' को 'दिवोदास' नामक पुत्र 'वरदानस्वरूप, दिया था, तु० वही, ६/६१।१ ३. आनन्द स्वरूप गुप्त, 'सरस्वती एज़ द रीवर गाडेस इन् द पुराणाज़' प्रोसीडिङ्गस् एण्ड ट्रान्सैक्शन्स ऑफ द बाल इण्डिया ओरिएण्टल कॉन्फ्रेन्स, भाग-२ ( गौहाटी, १९६५), पृ० ६६ ४. यास्क, निरुक्त, २ २३, "तत्र सरस्वत्येकस्य नदीवद्देवतावच्च निगमा भवन्ति " ५. लूइस रेनु, वैदिक इण्डिया ( कलकत्ता, १९६७), पृ० ७१
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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