SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सरस्वती की पौराणिक उत्पत्ति सरस्वती का वैविध्य मिलता है। यहाँ वह वाक्, वाग्देवी, ज्ञानाधिदेवी, वक्तृत्वदेवी आदि कही गई है। यहीं पुराणों में वाक् की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से बताई गई है। अत एव यहाँ वाक् की मनोवैज्ञानिक विवेचना अपेक्षित है। ___ वाक् मस्तिष्क की उपज है । इसे एक ब्राह्मणिक उदाहरण से भली-भाँति समझा जा सकता है। कहा जाता है कि मस्तिष्क 'रस' एवं 'बल' से अपनी निष्क्रिय अवस्था में समान रूप से परिपूर्ण ('रसबलसममात्रावच्छिग्न') रहता है । मस्तिष्क की इस दशा-विशेष में किसी प्रकार का विकार नहीं उत्पन्न होता है, लेकिन जब उसमें किसी प्रकार की अभिव्यक्ति की इच्छा होती है, तब वह श्वास में परिणत हो जाता है । साथ ही, जब यह अभिव्यक्ति की इच्छा अत्यन्त बलवती होती है, तब यह मस्तिष्क वाग्रूप में परिणत हो जाता है । इसी प्रकार ब्रह्मा की मानस उत्पत्ति का तात्पर्य वाक में माना जा सकता है। वाक् का व्यापक अर्थ ज्ञानसागर-रूप में लिया जाता है । ज्ञान के प्रमुख स्रोत वेद तथा शास्त्र हैं । कहा जाता है कि ब्रह्मा ने अपने मुख से सम्पूर्ण वेदों तथा शास्त्रों की उत्पत्ति की। सरस्वती वेद-रूप (ज्ञान) है। ब्रह्मा के चारो मुख चारो वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सरस्वती भी वाग्रूप में ब्रह्मा के चारो मुखों से प्रसूत हुई है और वह चारो वेदों का प्रतिनिधित्व करती है ।" प्रकृत विवेचन के आधार पर ब्रह्मा से सरस्वती की उत्पत्ति का तात्पर्य वाग्रूप ज्ञान की सृष्टि है। अन्यत्र वह शक्ति (कारण-संसार के उद्भव तथा प्रसार में) की प्रतीक है तथा इसी रूप मे ब्रह्मतर देवों से प्रसूत माना जाना चाहिए । १. पद्मपु० ५.२२.१८६; स्कन्दपु० ७.३३.२२; मार्क० पु० २३.५७; स्कन्दपु० ६.४६.२६; ब्रह्माण्डपु० ४.३६.७४; स्कन्दपु० ६.४६.२६६; ब्रह्मवै० पु० २.४.७३, ४.७५-८५, ५.११ इत्यादि । २. भागवतपु० ३.१२.२६ ३. मत्स्यपु० ३.२-४ ४. तु० डॉ० प्रियबाला शाह, विष्णुधर्मोत्तरपुराण, भाग ३ (बड़ौदा, १९६१), पृ० १४० : "The four faces of Brahman represent the four Vedas; the eastern Rgveda, the southern Yajurveda, the western Samaveda and the northern Atharvaveda". ५. तु० डॉ० रामशङ्कर भट्टाचार्य, पुराणगत वेदविषयक सामग्री का समीक्षात्मक अध्ययन (प्रयाग, १९६५ ई०), पृ० १२२, ३७८-३७६
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy