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________________ सरस्वती के कतिपय ऋग्वैदिक विशेषणों की विवेचना २१ 'इस प्रकार सप्तधा जल ऊपर उठते हैं और शुद्ध मानसिक क्रिया बन जाते हैं, वे स्वर्गीय शक्तिशाली होते हैं । वे वहाँ, केवल एक से उद्भूत भिन्न स्रोतों, परन्तु एक प्रथम चिरस्थायी सतत् नवीन शक्तियों के रूप में, अपने को प्रकट करते हैंक्योंकि वे सब एक ही अति चैतन्य सत्य सप्त शब्द अथवा मौलिक क्रियात्मक अभिव्यक्तियों, दिव्य मस्तिष्क, सप्त वाणी के गर्भ से प्रवाहित हुए हैं..."।१३ कुछ लोगों का सामान्य विचार यह भी है कि सात नदियों का अभिप्राय पंजाब की पाँच नदियों और सरस्वती तथा सिंधु में समझना चाहिए। इसके अतिरिक्त 'सप्तस्वसा' का अर्थ, जो लोग सात छंद मानते हैं, उसकी अपनी एक विशिष्ट महत्ता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि ऋग्वेद में सात प्रकार के छंद प्रयुक्त हैं । वे सब वाणी-स्वरूप हैं अथवा अवयव के रूप में सरस्वती की सात बहनें हैं अथवा पूरे ज्ञान के भण्डार को इन्हीं द्वारा विभक्त किया गया है । यह उपादान और भी मूर्तिमान् हो उठता है, जब सप्तस्वसा को सूर्य की सतरङ्गी किरणों के साथ समीकरण करते पाते हैं, क्योंकि भारती के रूप में सरस्वती का सूर्य से घनिष्ठ संबंध है। यह सूर्य ज्ञान का प्रतीक है ! यह अंधकार को दूर करता है तथा प्रकाशपुंज को फैलाता है। वाणी जिस प्रकार इला के रूप में पृथिवी-स्थानीय, सरस्वती के रूप में अंतरिक्षस्थानीय तथा भारती के रूप में घुस्थानीय है और अलग-अलग सप्तधा रूप में तीनों लोकों में विद्यमान है, तद्वत् यह सूर्य-प्रकाश भी अपने सप्तधा-रूप से तीनों लोकों में सतत् विद्यमान है। - इसी प्रसङ्ग में यहाँ एक और बात ध्यान देने योग्य है । वैदिक आर्यों ने 'सप्त' अथवा 'त्रिक' के प्रति अपनी अधिक आस्था व्यक्त की हैं, जिस प्रकार सात नक्षत्र, अथवा तीन देवियाँ सात ऋषि, सात लोक (ऋग्वेद में सरस्वती, इला और भारती; बाद के साहित्य में सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती तथा पुरुष रूप में ब्रह्मा, विष्ण और महेश) प्रसिद्ध है। यदि हम 'सप्तस्वसा' को नदी के रूप में स्वीकार करते हैं, तो निःसन्देह ही इससे भारत की उस भौगोलिक परिस्थिति का ज्ञान होता है, जब यहां बहुत सी नदियाँ रही होंगी, जिनमें सरस्वती का प्रमुख स्थान रहा होगा। लोग सदैव इन्हीं का नाम बड़े आदर तथा भक्ति से लेते रहे होंगे । शनैः शनैः लोगों में उनका महत्त्व और प्रतिष्ठा बढ़ती गई होगी और आपस की घनिष्ठता के कारण 'सप्तस्वसा' स्वभावतः प्रकाश में आया होगा । यदि यही अभिप्राय लक्षित है, तो 'सप्तस्वसा' का प्रयोग किसी भी इन नदियों के साथ किया जाना अनुचित नहीं है। यहाँ यह शब्द प्रकृत सरस्वती के साथ आया है, जो इसी अभिप्राय को द्योतित करता है। १३. श्री अरविंद, आन दि वेद (श्री अरविंद अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय केन्द्र, पांडिचेरी, १९५६), पृ० १३८ और आगे। -
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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