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________________ ब्राह्मणों में सरस्वती का स्वरूप १०६ (ख) सत्यवाक्: ऋग्वेद में सरस्वती को 'चोदयित्री सनतानाम्' कहा गया है, क्योंकि वह सुन्दर तथा सत्य वाक् को प्रेरित करने वाली है। इस सन्दर्भ में सरस्वती की अथवा साधन है तथा सत्य वाक् कर्म है । यहाँ दोनों का ऐक्य वणित नहीं है । इसके विपरीत तंतिरीयब्राह्मण में उसे सत्यवाक् ही कह दिया गया है, अर्थात् सरस्वती सत्य वाक्-स्वरूप ही है । श्रीमाधव ने सत्य वाक् का चतुर्थ्यन्त रूप 'सत्यवाचे' का 'अमृतवाक्यरहिताय' अर्थ किया है।५४ यह अर्थ सूचित करता है कि वाक् के रूप में सरस्वती पूर्ण सत्य है । इसकी पुष्टि एक ऋग्वैदिक उदाहरण से होती है, जिसमें उसे 'पवित्र विचारों को प्रकाशित करने वाली-चेतन्ती सुमतीनाम्" कहा गया है । (ग) सुमृडीका : 'सुमृडीका' उपाधि तैत्तिरीयब्राह्मण तथा तत्तिरीय-आरण्यक में प्रयुक्त है। इसका तात्पर्य 'मयोभूः५६ के अर्थ में है, जो सरस्वती के लिए ऋग्वेद में प्रयुक्त है तथा जिसका अर्थ सायणाचार्य ने 'सुखोत्पादिका तथा 'सुखस्य 'भावयित्री५८ किया है। सुमृडीका का प्रयोग चतुर्थ्यन्त में अदिति के लिए तैत्तिरीयब्राह्मण में प्रयुक्त है। 'अदित्य स्वाहा अदित्य महत्यै स्वाहा । अदित्य सुमृडीकार्य स्वाहेत्याह ।५९ यहाँ सुमृडीका का अर्थ दयालु (liberal)है । देवों की माता के रूप में अदिति स्वभाव से अपनी सन्तानों के प्रति नितान्त उदार है । तत्तिरीय-आरण्यक में यह शब्द अनेकशः प्रयुक्त है । सायण ने इसकी व्याख्या 'सुष्ठु सुखहेतुः' और 'सुष्ठु सुखकारी ६२ किया है । सरस्वती इडा के रूप से शान्ति तथा समृद्धि को प्रदान करती है तथा लोगों को सुन्दर उपहारों को देती है। इस प्रकार वह लोगों के लिए विश्राम तथा प्रसन्नता लाती है । सायण ने तैत्तिरीय-भारण्यक में सरस्वती के लिए प्रयुक्त सुमृडीका से इसी प्रकार का भाव अथवा अर्थ ग्रहण किया है । सुमृडीका का अर्थ 'अच्छी मिट्टी रखने वाली' भी है । यहाँ हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि तैत्तिरीय-आरण्यक सरस्वती ५२. ऋ० १.३.११ ५३. ब्राह्मण, २.५.४.६ ५४. तत्तिरीयब्राह्मण, भट्टभाष्कर मिश्र की व्याख्या सहित अष्टक २, (मैसूर, १९२१), पृ० २४६ ५५. ऋ० १.३.११ ५६. वही, १.१५.६:५.५.८ ५७. सायण-भाष्य वही, १.१३.६ ५८. वही, ५.५.८ ५६. ० ब्रा० ३.८.११.२ ६०. तं० मा० १.१.३, २१.३, ३१.६; ४.४२.१ ६१. तु० सायण-भाष्य वही, १.१. ३ ६ २. वही, ४.४२.१ .
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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