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संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ
"विश्वां प्रजानां भरणं पोषणं विशम्भलं तत्कर्तुं क्षमा विशम्भल्या तादृशी।" तदनुसार वैशम्भल्या वह है, जो सम्पूर्ण प्रजाओं का भरण-पोषण करती है। यह संयुक्त शब्द वैशम् +भल्या से बना है। वैशम्। विश् से बना है, जिसके अनेक अर्थ हैं : "a man, who settles down on or accupies the soil, an agriculturist, a merchant, a man of the third or agricultural caste (=vaisya, p. v.); a nan in general; people."
इसी प्रकार 'भल्या' भर (/भृ=धारण करना या सहारा देना) के समकक्ष प्रतीत होता है। यहाँ वैशम्भल्या सरस्वती के प्रकृति अथवा चरित्र पर ध्यान रखते हुए यह एक सर्वप्रिय उपाधि प्रतीत होती है । यह उपाधि सरस्वती को एक नदी उद्घोषित करती है । सरस्वती को ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि वह अपने स्वास्थ्य-वर्धक जलों द्वारा उन लोगों का भरण-पोषण करती है, जो कृषि-कर्म पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं अथवा जो उसके प्रतिवासी हैं। सरस्वती को 'वाजिनीवती' कहा गया है, क्योंकि वह अन्न-दात्री है । वैशम्भल्या का अर्थ इस वाजिनीवती के अर्थ के आस-पास है।
इस तरह की उपाधियों के प्रयुक्त होने के पहले जलों की महती प्रशंसा की गई है । उन जलों को औषध के समान माना गया है तथा उन्हें विश्व भेषजीः' कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे जल सम्पूर्ण संसार के लिए औषध के समान हैं। विश्वभेषजीः का प्रयोग पहले है, तदनन्तर वाजिनीवती तथा वैशम्भल्या के प्रयोग मिलते हैं । वैशम्भल्या से उपर्युक्त अर्थ की प्रतीति होती है ।“ मधुर मधु के समान सरस्वती का जल गौओं में प्रभूत दुग्ध तथा अश्वों में शक्ति को उत्पन्न करता है । वाक् के रूप में भी सरस्वती पालन-पोषण अथवा शक्ति (पुष्टि) प्रदान करती है, जिसमें पशु भी समाश्रित हैं ।५१
४३. सायण-व्याख्या वही, २.५.८.६ ४४. तु. मोनियर विलियम्स, ए संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी (आक्सफोर्ड,
१९७२), पृ० ६४१ ४५. वामन शिवराम आप्टे, द प्रैक्टिकल संस्कृत-इङ्गलिश डिक्शनरी(पूना, १८९०),
पृ० ८०६ ४६. त० ब्रा० २.५.८.६ ४७. वही, २.५.८.६ ४८. सायण-व्याख्या वही, २.५.८.६ ४६. तु० डॉ० मुहम्मद इसराइल खाँ, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ८२-८३ ५०. तु० गेल्डनर ऋ० ७.६६.३ (वाजिनीवती के प्रसङ्ग में) ५१. श० ब्रा० ३.१.४.१४