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________________ १०६ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ अस्मान् सोमो राजा ऽऽ गच्छेदिति सा वागब्रवीत स्त्रीकामा वै गन्धर्वा मयैव स्त्रीया भूतया पणध्वमिति नेति देवा अब्रु बन् कथं वयं त्वऋते स्यामेति सा अब्रवीत कोणीतैव मया अर्थों भविता तो वोऽहं पुनरागताऽस्मीति तथेति तया महानग्नया भूतया सोमं राजनम् अक्रोणम् ।।१०।। एतदनुसार सोम गन्धर्व विश्वावसु के द्वारा चुराया गया था तथा स्वान् तथा भ्राजि नामक गन्धर्वो से रक्षित था । ६. शतपथब्राह्मण की कथा : इस ब्राह्मण में कथा कुछ अधिक विस्तार से वर्णित है। इस ब्राह्मण में दिखाया गया है कि सोम स्वर्ग में था। देवता पृथिवी-तल पर सोम-यज्ञ करना चाहते थे, परन्तु सोम के अभाव में यह सम्भव नहीं था। फलतः सोम को लाने के लिए उन्होंने सुपर्णी एवं कद्रू नामक दो मायाओं को उत्पन्न किया। सुपर्णी तथा कद्रू आपस में लड़ने लगीं तथा कद्र ने सुपर्णी को हरा दिया। फलतः सुपर्णी को सोम लाना पड़ा। तदर्थ उसने स्वयं को छन्दों में परिणत कर दिया तथा उन छन्दों में से छन्दों की देवी गायत्री सोम को लाई ।२ यहाँ सोम को स्वर्गस्थ दिखाया गया है। गायत्री सोम को लाने के लिए एक पक्षी. का रूप धारण कर स्वर्ग को उड़ी ।३२ सोम लेकर आते समय विश्वावसु नामक गन्धर्व ने उसे रोका तथा गन्धर्वो ने उससे सोम ले लिया । जब गायत्री को वापस आने में अत्यधिक विलम्ब हो गया, तब उन्होंने विचार किया कि हो न हो, गन्धर्वो ने सोम छीन लिया हो। जब कुछ आशा नहीं रही, तब उन्होंने किसी अन्य को भेजने का विचार किया। उन्हें ज्ञात था कि गन्धर्व स्त्रियों के प्रेमी हैं, अत एव उन्होंने वाक् को तदर्थ भेजा ।३५. इन दोनों कथाओं में कुछ अन्तर है ।ऐतरेय-ब्राह्मण के अनुसार स्वयं वाक् ही देवों की सहायता के लिए उद्यत है। उसने स्वयं ही कहा कि देवता स्त्री-प्रेमी हैं । मैं आप लोगों की सहायता करूँगी तथा सोम प्राप्त होते ही वापस आ जाऊँगी। शतपथब्राह्मण के अनुसार देवों को स्वतः जात था कि गन्धर्व स्त्री-प्रेमी हैं, अत एव उन्हें वाक् को भेजना पड़ा । शतपथब्राह्मण के अनुसार जब वाक् सोम लेकर वापस आ रही ३०. ऐतरेयब्राह्मण, १.२७ ३१. तु० वही, १.२७; इसी पर सायण की व्याख्या । ३२. शतपथब्राह्मण, ३.२.४.१ ३३. वही, ३.२.४.२ ३४. वही, ३.२.४.२ ३५. वही, पृ० ३.२.४.३ ३६. ऐतरेयब्राह्मण, १.२७
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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