________________
ब्राह्मणों में सरस्वती का स्वरूपं
१०५
वीणा से घनिष्ठ सम्बन्ध है । गन्धर्वों का सोम से सम्बन्ध प्रदर्शित किया गया है, परन्तु सरस्वती भी इन्द्र से सम्बद्ध है । जब इन्द्र अधिक सोम-पान कर लेता है, तब सरस्वती उसकी चिकित्सा करती है । वह कथा यजुर्वेद में सविस्तार वर्णित है ।
वाक् तथा गन्धर्वों की कथा सोम से प्रारम्भ होती है । यह कथा कुछ भिन्नता के साथ यजुर्वेद में घटित होती है, जिसमें सोम, इन्द्र, नमुचि, सरस्वती तथा अश्विनों का वर्णन है । " ब्राह्मणों में भी यह कथा वर्णित है । प्रतीत होता है कि ब्राह्मणों ने यह कथा यजुर्वेद से उधार ली है, परन्तु इस कथा में थोड़ा अन्तर है । यजुर्वेद में नमुचि को सोम चुराते हुए प्रदर्शित किया गया है, परन्तु ब्राह्मणों में गन्धर्व इन्द्र के सोम का अपहरण करते हैं तथा वे उसे जल में छिपा देते है : " गन्धर्वा ह वा इन्द्रस्य मोममप्सु प्रत्यायिता गोपयन्ति त उह स्त्रीकामास्ते हासु मनांसि कुर्वते ।" ७ गन्धर्व सोम की केवल चोरी ही नहीं करते, अपितु उनकी रक्षा भी करते हैं । २८ फिर भी सोम की चोरी के विषय में बड़ी भ्रान्तियाँ हैं । अन्ततः यह सोम गन्धर्वो के पूर्ण आधिपत्य में आ गया था तथा देवता उसे वापस केवल परिक्रयण के माध्यम से प्राप्त कर सके । सोम की प्राप्ति-विधि का नाम ' सोम-त्रय' है ।" यह वर्णन सविस्तार ऐतरेय तथा शतपथ ब्राह्मणों में आया है तथा उसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है ।
५. एतरेय ब्राह्मण की कथा :
परिणत हो गई ।
में
ब्राह्मणों का कथन है कि वाक् स्वेच्छानुसार स्त्री-रूप में यह कथन निम्नलिखित प्रत्यवेक्षण से स्वतः सिद्ध हैं । इस सम्बन्ध कहा गया है कि गन्धर्व स्त्रियों के अत्यन्त प्रेमी हैं । यहाँ वाक् देवों की स्त्री रूप में प्रकल्पित है । सोम गन्धर्वो के पास था, जिसके कारण देवों को बड़ी चिन्ता थी । फलतः वे ऋषियों से मिल कर सोम को वापिस पाने की विधि पर विचार करने लगे । इसी बीच वाक् ने मध्यस्थता की और बोली कि मुझे गन्धर्वो की स्त्री-प्रियता का ज्ञान है । उसने अपनी सेवाएँ अर्पित की और बोली कि मैं स्त्री-रूप बना कर गन्धर्वों के पास जा सकती हूँ तथा सोम का क्रय कर सकती हूँ । देवों ने वाक् की अनुमति को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वे उसके विना नहीं रह सकते थे । वाक् ने प्रण किया कि मन्तव्य की पूर्ति होते ही मैं वापस आ जाऊँगी । देवों ने उस प्रण को स्वीकार कर लिया तथा उस विधि से सोम-क्रय हुआ :
" सोम वै राजा गन्धर्वेष्वासीत् तं देवाश्च ऋषयश्चाभ्यध्यायन् कथम् अयम्
२६. द्र० यजुर्वेद, १०.३३-३४; ऋ० १०.१३१-४-५; मैक्समूलर, सेक ेड बुक्स ऑफ द इस्ट, भाग ४२, पृ० ३२८
२७. शाहू खायन ब्राह्मण, १२.३
२८. बी० आर० शर्मा, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० ६८
२६. द्र० आगे की शतपथ ब्राह्मण की कथा