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________________ ग्रीक और रोमन पौराणिक कथा में सरस्वती की समकक्ष देवियाँ ८३ इस प्रकार शब्द संस्कृत के 'पाजस्' के निकट है, जिसका अर्थ शक्ति अथवा गति है । पेगासस के मूल में पाजस् धातु है । सरस्वती भी सृ गतौ से निर्मित है और गति - अर्थ को ध्वनित करती है । वह माध्यमिका के रूप में मेघों में निवास करती है ।" इस प्रकार सरस्वती (नदी) तथा हिप्पोक्रीन (नदी) के उत्पत्ति क्रम में अत्यन्त निकट का सम्बन्ध है । निकटता के साथ-साथ थोड़ा अन्तर हैं तथा यह अन्तर यह है कि सरस्वती का धरती पर अस्तित्व इन्द्र देवता के कारण है, " जब कि हिप्पोक्रीन का जन्म पेगासस् अश्व के द्वारा हुआ है । यह अन्तर अत्यल्प है । यही कारण है कि यह अन्तर इन्द्र तथा पेगासस्*" के दार्शनिक महत्त्व की हानि नहीं पहुँचाता है, क्योंकि दोनों ही शक्ति अथवा तेजस् के प्रतीक हैं । ४५ ४३. श्रीअरविन्दो, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १०६ ४४. तु० अथर्ववेद, ७.१२.१; श्रीपाददामोदर सातवलेकर, अथर्ववेद सुबोध भाष्य, भाग ३ ( सूरत, १९५८), पृ० ४५ (अथर्व० ७.१२.१ के सन्दर्भ में) ५५. तु० वृष्णः पत्नीः ऋ० ५.४२.१२ में आया है, जिसका अर्थ सायण ने इस प्रकार किया है : " वृष्णः वर्षकस्येन्द्रस्य पत्नीः नद्यः । नदनशीला गङ्गाद्या: ।" गेल्डनर ने इसका अर्थ वृषभ अर्थात् इन्द्र की पत्नियाँ किया है । ४६. मोनियर विलियम्स, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १४० ४७. श्रीअरविन्दो, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, १०६
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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