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________________ माँ सरस्वती ८८ श्री सरस्वती साधना विभाग . आत्मा बने विमल ने शुभ भाव जागे, आनंद दिव्य प्रगटे मन मुक्ति मांगे । मिथ्या मनोरथ तजी मन शांत थातुं, आनंद रूप बनतुं शीव गान गातुं ।।२१।। . ज्ञानी बने सुख दुःखे समभाव धारे, संसार चित्र सघळा मनना निवारे । ना राग-द्वेष-ममता मनने सतावे, तेवो प्रभाव धरती निज नो बतावे ||२२।। को अप्सरा नभ तजी उतरी धराये, तेवी सुहे वसुमती सुर गुण गाये । दीपी रही हरीत शी धरती अनेरी, नाची उठी सुर रमा निरखी नवेली ।।२३।। . कैलाश आदि-प्रभुना शुभ मुक्तिधामे, अष्टापदो शिखरना चढता सुनामे । आवे रवि सुरगणो प्रभु पाद पुंजे, मृदुंग वाद्य सुर संगीत दिव्य गुंजे ।।२४।। देवांगना मधुर गीत सुसाथ गाये, त्यां रास भव्य रमती नव हर्ष माये । गांधर्व यक्ष सुर किन्नर सर्व आवे, श्री आदिनाथ प्रभुने भजता सुभावे ।।२५।। हिमाद्रिनु अतुलरूप महान जोती, आकाशमां विचरती शुभ गान गाती । ते शारदा गगनथी उतरी रही शी, छायी घटां कच तणी बदरी समीशी ।।२६।। कैलाशना शिखरथी उतरी धराये, जाणे उषा नभ तजी प्रगटी धराये । केली ललित तरुणी शुभ शारदा शी ? कैलाशने निरखती विचरी रही शी ||२७||
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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