________________
माँ सरस्वती
४५
श्री सरस्वती साधना विभाग
सरस्वती साधकों को संदेश समयग्-ज्ञान की उपासना, ज्ञानवरणीय कर्मो की निर्जरा एवं स्मरणशक्ती की बौद्धिक निर्मलता के लिए 'माँ सरस्वती' की जाप-साधना श्रेष्ठ अनुष्ठान है। जो मन्दबुद्धि है, बोलने में तुतलाते है, जिनके अस्पष्ट या अशुद्ध उच्चारण है, जो अपनी बात सही तरीके से समझा न पाते है, जिनकी स्मरण-शक्ति कमजोर है, जिन्हें बुरे या दुर्विचार आते है अथवा ज्ञान के प्रति जिनकी रुचि न जगती है-ऐसे लोग सरस्वती जाप-साधना में अवश्य जुडे । स्मरण रहे कि माँ सरस्वती की जाप-साधना एक सात्विक व सम्यक् साधना है और इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पडता | मंत्र की सिद्धि व साधना की फलश्रुति के लिए १,२५,००० (सव्वा लाख) जप करने का लक्ष्य रखें । उससे कम ५१,००० (इक्यावन हजार), २७,००० (सत्ताईस हजार) अथवा १२,५०० (बारा हजार पांचसो) जाप का लक्ष्य तो रखा हो जाना चाहिए । उच्चारण पूर्वक जाप न करें, कोशिश करें कि जाप के दौरान होंठ व जीभ भी न हिलें; यह जाप की श्रेष्ठ प्रक्रिया है और उससे जाप अधिक सार्थक होते है। किसी भी स्थान पर या किसी व्यक्ति के समक्ष मंत्र की चर्चा हरगीज न करें । स्मरण रहें कि मंत्र की चर्चा मंत्र की सिद्धि में बाधक होती है । साधना के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें, आहार पर संयम रखें और व्यसन मुक्त रहें । साधना-काल के दिनों में क्रोध, अभिमान, माया-कपट, लोभ, ईर्षा व राग-द्वेष से बचते हुए मन को निर्मल रखने का प्रयास करें । अधिक से अधिक मौन रखें, गलत स्थानों व गलत व्यक्तियों से दूर रहें और इस
प्रकार साधना की उपलब्धियों की अनुभुति करें । • साधना के साफल्य के लिए शक्ति व भावना हो तो उपवास, अन्यथा