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________________ माँ सरस्वती ३६ श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग श्री सम्यग्ज्ञान का चैत्यवंदन त्रिगडे बेठा वीरजिन, भाखे भविजन आगे । त्रिकरण शुं त्रिहुं लोक जन, निसूणो मन रागे ||१|| आराधो भली भातसें, पांचम अजुवाली । ज्ञान आराधना कारणे, ऐहिज तिथि निहाळी ॥२॥ ज्ञान विना पशु सारिखा, जाणो एने संसार । ज्ञान आराधना थी लहे, शिवपद सुख श्रीकार ||३|| ज्ञान रहित क्रिया कही, काश कुसुम उपमान । लोकालोक प्रकाश कर, ज्ञान एक प्रधान ||४|| ज्ञानी श्वासोश्वासमां, करे कर्मनो छेह | पूर्व कोडी वरसे लगे, अज्ञानी करे जेह ॥५॥ देश आराधक क्रिया कही, सर्व आराधक ज्ञान । ज्ञान तो महिमा घणो, अंग पांचमे भगवान ||६|| पंचमास लघु पंचमी, जावज्जीव उत्कृष्टि | पंचवर्ष पंच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि ||७|| अकावन ही पंचनो ए, काउस्सग्ग लोगस्स केरो । उजमणुं करो भावशुं, टाळो भवनो फेरो ॥८॥ इणी पेरे पंचमी आराधीए, आणी भाव अपार । वरदत्त गुणमंजरी परे, 'रंगविजय' लहो सार || ९ || आगम याने क्याँ ? हर धर्म के अपने-अपने स्पेश्यल एवं प्रख्यात धर्म ग्रंथ होते है । जैसे किहिंदुओ में गीता-रामायण- ज्ञानेश्वरी, मुस्लिमोमें कुरान, क्रिश्चनों में बाइबल, खो में ग्रंथ साहिबा मूख्य रुप से माना जाता है, उसी तरह जैन धर्म में सर्वाधिक महत्व भगवान श्री महावीर प्ररुपित आगम शास्त्र को दिया गया है । जी हाँ ! इस विषम-काल में 'जिन-प्रतिमा' और 'जिन आगम' ही हमारे सच्चे आधार है ।
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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