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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग एवं मए अभिथुआ, विय-रय-मला पहीण जरमरणा। चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ||५|| कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्ग बोहिलाभं , समाहि-वर-मुत्तमं दिंतु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागर-वर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ||७|| (अंतमें १ खमासमण देना) (काउसग्ग विधि संपूर्ण)
-श्रुत ज्ञान वंदना १) श्रुतज्ञान ने स्थापित करे ते अर्हतो ने वंदना
श्रुतज्ञान ने हृदये धरे ते गणधरोने वंदना श्रुतज्ञान ने ले वारसे, दे वारसे तस वंदना
श्रुतज्ञानने करी वंदना, करुं पापनी निकंदना. २) जे शुद्ध केवलज्ञान छे, तस सूर्य सम सन्मान छे, .
वळी तस हयाती न होय तो, सुयनाण दीप समान छे,
स्व-पर प्रकाशक जेह छे, श्रद्धा तणु सोपान छे... श्रुत० ३) श्रुत प्राण छे श्रुत त्राण छे, प्रभुवर प्रति जे प्रयाण छे,
मुगति तणा पथ ने कहे, ते भोमियो सुयनाण छे,
श्रुत आंख छ श्रुत पांख छे, वळी सुख रयणनी खाण छे...श्रुत० ४) जिन-वयण ने जे लखावशे, ते दुर्गति पामे नहि,
मुंगापणुं, वळी जडपणु ने अंधतां आवे नहि,
जिन-शास्त्र ने जे लखावशे, ते बुद्धि हीन बने नहि... श्रुत० ५) श्रुतज्ञान जगदाधार छे, श्रुतज्ञान रक्षणहार छे,
श्रुत शास्त्र छे, श्रुत शस्त्र छे, वळी जिन वचन आकार छ, चैतन्य ने जागृत करे, ते तेहवो चमकार छे... श्रुत०