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माँ सरस्वती
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श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
|५. आत्मिक पढने के प्रवृत्ति को शुष्क और व्यवसायिक न बनाईये । ज्ञान प्राप्ति का सच्चा सम्बन्ध तो आत्मा से है | आत्म प्रकाश पडते ही कोई भी ज्ञान, अनुभव ज्ञान बन जाता है । इसलिये ध्यान रखें ।
१. शिक्षक और विद्यार्थीओं का सम्बन्धं भौतिक नही , आत्मिक होना चाहिए । विद्यार्थी को पूत्रवत् मानकर अपने को 'मास्तर' माँ का स्तर बनाकर प्रेम से माँ की लागनी से ज्ञान देने से शिक्षक और विद्यार्थी में एकरसता निर्माण होती है और जैसे दीप से दीप प्रगटता है, वैसे ही शिक्षक के अंतःकरण में रहा हुआ ज्ञान, विद्यार्थी के अंतःकरण में प्रगट हो जाता है। पढाई से पूर्व ऐसा सम्बन्ध निर्माण करना निश्चित ही लाभदायक होता है |
२. प्रसन्न वातावरण निर्मिती के साथ साथ प्रसन्न रहने की सलाह विद्यार्थी को देनी चाहिए । हररोज मार डाट कर, दंड करके या अन्य कोई सजा करके उन्हें पढाया नहीं जा सकता । उदात्त तथा अन्य की भलाई करने का लक्ष्य रखकर प्रसन्न रहा जा सकता है। अच्छे कार्य, उत्तम विचार, उदात्त लक्ष्य से प्रसन्नता आती है और प्रसन्नता तथा प्रेम से ग्रहणशीलता बढती है।
३. अपना स्वयं का जीवन आत्म-मोक्ष-जगत हितार्थ है, ऐसी अनुभूती उन्हें करानी चाहिए । सब के साथ अच्छे सम्बन्ध, प्रकृति प्रति स्नेह, सब के कल्याण की.कामना रखना यह उनके अपने स्वयं के विकास के साधन है । दीन दुखियों का दुःख दूर करने की तत्परता, देशभक्ति का भाव , सबके प्रति मैत्री, प्रमोद, करुणा तथा माध्यस्थ भाव रखने से व्यक्तिमत्व संवेदनशील बनता जाता है । ज्ञान प्राप्ति के लिए संवेदनशीलता बहुत जरुरी है ।
• सेवा करने में हृदयपूर्वक भाग लेनेवाले विद्यार्थी, शिक्षण प्रति भक्तिभाव का अनुभव करते है, अच्छे कामों से आनंदित होने से आप ही आप ज्ञान प्राप्ति हो जाती है । वासना में रस लेना, सुस्त होना, स्वार्थी होना यह अंधकार है। प्रेम, प्रसन्नता तथा संवेदनशीलता का सूर्य उगने से ही अंधकार का लोप होता है। अज्ञान रुपी अंधकार का लोप करना यही सरस्वती साधना है।
सच्चे अर्थ में विद्यार्थी बनिए, उसी में देश तथा दुनिया एवं आत्मा की भावी उन्नती का रहस्य छिपा हुआ है । सा विद्या या विमुक्तए...!!!