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माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
(अक्षर लेबल निकालकर ही कपडे पहनें, वरना भयंकर पाप लगता है ।) ७) भोजन करते समय मौन रखे । झुठे मुँह से न बोलें, न पढ़ें एवं न तो लिखें । (बोलना अनिवार्य हो, तो पानी पी के बोले)
८) भोजन करते समय T.V./V.D.O. न देखें । (बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । वास्तविकरित्या T.V./V.D.O. देखना ही नही है ।) ९)
भोजन कभी झुठा न छोडें तथा हमेशा थाली धोकर ही पीवे । १०) नित्य-नवकारशी का पच्चक्खान करें तथा रात्रिभोजन का त्याग करें । ११) प्रभु पूजा एवं गुरुवंदन अवश्य करे । (शीघ्रता से बुद्धि बढती है ।) १२) (दीपावली में) फटाके न फोडे । (भयंकर पाप लगता है ।) १३) पेन-पेन्सिल मुख में, कान में न डालें ।
१४) (धार्मिक) पुस्तक रद्दी (पस्ती) में न डालें ।
१५) कभी भी अपशब्द न बोले तथा गुस्सा न करें ।
१६) खाते-पीते-संडास बाथरुम जाते, कागज, पैसे, घडीयाल, मोबाईल, नोट-पेन, पुस्तक वगैरे ज्ञान के साधन साथ में न रखें ।
१७) कागज की - डीश / ग्लास / रुमाल वगैरे का खाने में उपयोग न करें । १८) कागज-पुस्तक-पोथी- नवकारवाळी आदि ज्ञान के साधन को कभी भी न फेकें तथा उन्हें पैर न लगाए ।
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१९) ३ दिन M. C. का चुस्त पालन अवश्य करें । शक्य उतना मौन रखें और हाँ...M.C. में (अंतरायमें) ज्ञान के साधन, पेपर, मासिक, पैसे, पेन, फोन वगैरे को स्पर्श भी न करें ।
२०) पाठशाला के पंडितजी, स्कूल टीचर्स, ट्युशन टीचर्स का अपमान कभी न करें । उनका उचित आदर-सत्कार और बहुमान करने से ज्ञान हमारी आत्मा में शीघ्रतः परिणमित होता है ।
२१) ज्ञान की नित्य आराधना करें। कम से कम एक गाथा (श्लोक) कंठस्थ करें । २२) ज्ञान-ज्ञानी एवं ज्ञानके साधनों का अवश्य बहुमान करें ।
इन तीनों की आशातना करनेसे भयंकर दोष / पाप लगता है, जिसके प्रभावसे हम तोतडे-बोबडे, गुंगे-बहरे, लंगडे-पांगडे, रोगीष्ट तथा मंद बुद्धिवाले बन जाते है । अतः हमेशा सावधान रहे ।