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________________ अंतर की प्रार्थना । विश्ववंद्या ! सद्य वरदा ! भक्त वत्सला ! हे माते ! सरस्वती भगवती ! आज तुझे देखकर अंतर की उर्मियों से आनंद सागर छलक रहा है। जैसे चन्द्र के दर्शन से चकोर पक्षी नाच उठता है, मेघ की गर्जना से मयुर झुम उठता है, वैसे ही आज तेरे दर्शन-पूजन और भक्ति द्वारा हर्ष के अतिरेक से मेरा मन नाच रहा है, मेरे वचन उल्लसित हो उठे है...मेरे नयन पवित्र बन चुके है । आज मैं अपने आपको विश्व का एक धन्यतम अवतारी आत्मा समझ रहा हूँ| सच कह तो 'माँ' शब्द उच्चारते ही मेरा मुख भर जाता है । दिल में परम-तृप्ति होती है, इच्छाए परितोष प्राप्त करती है | बहुत कुछ माँगने का मन होता है...किन्तु माँ ! तेरी अस्मिता ही इतनी भव्य और दिव्य है कि, मेरी समस्त इच्छा, आकांक्षा और कामनाओं का अस्तित्त्व ही विलीन हो जाता है । फिर भी, इस भक्त को अगर कुछ देना ही चाहती हो, तो हे माते ! हमारे मोह-माया और अज्ञान-तमस्-कुमतिका सर्वथा नाश करना...मन के सभी विकल्प-विमोह और विकृतिओं को हमेशा दूर करना । पाप-ताप और संताप को शमाकर शांति-समता और समाधी देना । हमारे जीवन की दीनता-दारिद्र एवं दुर्मति को सदा के लिए दूर करना। सम्यग्ज्ञान-विद्या-बुद्धि एवं निर्मल प्रज्ञा के साथ-साथ विनय-विवेक के प्रकर्ष को देना । अखिल ब्रह्मांड के सौभाग्य एवं कल्याण अर्थे मेरे हृदय-कुंभ में निःसीम करुणा-मैत्री और वात्सल्य का अमृत भरना । इस संसार के आर्त और पीडित प्राणीओं पर सतत प्रेम की . पावन गंगा बहाना । और हाँ....! अनंत शक्ति-समृद्धि एवं सिद्धि का द्वारोद्घाटन । करके जाज्वल्यमान आत्म ज्योतिरूप केवलज्ञान की साद्यंत प्रणेता बनकर हमारे मेरे इस मनुज भव को सफल एवं सार्थक बनाना anistar
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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