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[२१] असंख्य प्रदेशी ध्याववाथी, पस्यति विकसे खरी।
बुद्धि सागर परापस्यति, मुक्ति झट दिलमां धरी ॥ १४ ॥ परा पस्यतिमां तो, प्रभुनु रूप जणातुं । अनुभवयी योगीश्वर, वचने सत्य ग्रहातुं ॥
शुध स्वभावे आत्मिक, दर्शन तुर्त पमातुं ।
आत्मिक भावे अनन्त, सुख तो दिलमांथातुं ॥ सहज चेतन ध्यान करवा, प्रणव प्रथमो थाय छे ।
बुधिसागर सहज रुधि, प्रणव मंत्रे थाय छे ॥ १५ ॥ परमेष्टि आद्याक्षरथी, ॐकार भण्यो छे। .. सर्व मंत्रमा आद्य मंत्र ॐकार गण्यो छे ॥
सर्व मंत्रमां प्रणव मंत्र, छे शिव सुखकारी।
आपे क्षित जीन वचनो, समझो नरनेनारी ॥ प्रणव मंत्रे सत्व शक्तिज, प्रगटती दिलमां खरी।
बुधिसागर प्रणव मंत्रे शांतता मनमां वरी ॥ १६॥ प्रणव मंत्रमा सर्व मंत्रनो, सार समातो। प्रणव मंत्रनो महिमा, जगमा बहु वखाणा तो॥
प्रणव मंत्रने जगमां, मुनिवर प्रेमे साधे ।
प्रणव मंत्र थी सूर्य समो, महिमा जग बाघे ॥ कण्ठ चक्रमां प्रणव मंत्रे, वचन सिधि थाय छे।।
टले पिपासा प्रणव मंत्रे कण्ठ संयम थाय छे ॥ १७॥ त्रिपुटीमा प्रणव मंत्रनु, ध्यानज' साचुं। तद्रावस्था जयकारी, ॐकारे राचुं ॥
प्रणव मंत्रे दर्शन, आपे अनेक अनेक देवो।
सालंबन ॐकार, मंत्रने : प्रेमे सेवो ॥ सालंचन ॐकार मंत्रे, देव दर्शन थाय छे।
बुद्धिसागर प्रणव मंत्रे, सत्य शांति पाय छे॥ १८ ॥ दर्शन आच्छादन टलतुं, ॐकार प्रभावे । । त्रिपुटीमां प्रणव मंत्री ज्ञानी गावे ॥