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त्रिपुटीमा साळंबन संयमनी रीती । मनवश करवा माटे, सालबननी नीती ॥ त्रिपुटीयां प्रणव मंत्रथी, दोष सघला झट टले । बुद्धिसागर प्रणव मंत्रे इच्छीए ते झट मले ॥ १९ ॥
ब्रह्म भ्रमां प्रणव मंत्रने, प्रेमे साधो । ब्रह्म रंधमा प्रणव मंत्रना करीए जापो ॥
ब्रह्म रंधमां परम समाधि, मंगलकारी । उपादान निमित्त हेतुता, पुष्ट थनारी ॥ प्रणव मंत्रना ध्यान योगेज लॅब्धि रुधि प्रगटती । बुधिसागर गुरु कृपाथी प्रणव मंत्र छे गति ॥ २० ॥
गुरु क्रपाथी प्रणव मंत्रनी, सिद्धि थाने । गुरु ऋपाथी सर्व सिद्धिओ, प्राणी पावे ||
सुरा जनने प्रणव मंत्र, तो तुर्त फले छे । सुगुरा जनने प्रणव मंत्रनुं सार मले छे ।
प्रणव मंत्रनो साथ महिमा, माणसा आवी रच्यो । सुखान्दि गुरुना प्रतापे, बुद्धिसागर मन पचो ॥ २१ ॥
( योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरजी सुरीजीकृत अध्यात्म भजन संग्रहमांथी )