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प्रणव मंत्रना अर्थ थकी, चेतनने ध्यावो । पामी नरभव दुर्लभ, लेशो आत्मिक लहावो ॥ परम ईश भगवान, खरेखर चेतन परम मंत्रथी चेतन, ध्याने मनमां परम ईश्वर प्राप्त करवा, प्रणव साचो बुद्धिसागर ध्यान कीला, प्रणव मंत्रे हृदयकमलमां प्रणव, मंत्रने प्रेमे स्थापो । निजगुण शक्ति खीलवी, निजने रहेने आपो ।
परखो । हरखो |
ध्याइए । पाईए ॥ १० ॥
विषय विकारो साग, करी अंतरगुण धारो । विर्विकल्प उपयोग, धरी चेतनने तारो ॥ आत्मजीवन उच्च करवा, प्रणव सखोपाय छे । बुद्धिसागर प्रणव मंत्रे, सहज लीला थाय छे ॥ ११ ॥
प्रणव मंत्रथी चित्त तणा, सौ दोष टले छे । प्रणव मंत्री सात्विक, गुणमां चित्त मले छे ॥
प्रणव मंत्रथी संयमनी, प्रगटे छे प्रणव मंत्रथी आत्यंतिक सुख छे प्रणव मंत्र स्वप्न निर्मल, देव दर्शन थाय छे । मोह ग्रंथी भेद थातां, शक्ति झट परखाय छे ॥ १२ ॥
सिद्धि । रुद्धि ॥
हृदयकमळमां स्थिसेपयोगे ध्यान खुमारी । हृदयकमलमां स्थिरोपोगे शिव तैयारी ॥
हृदयकमलमा स्थिरता साधी शिवपद लीजे ! प्रणव मंत्र हृदयकमळमां नित्य बड़ीज़े || असंख्य प्रदेशी आत्मदर्शन कीजिये मेमे सदा । बुद्धि सागर आतम दर्शन स्थिरोपयोगे छे सदा ॥ ११ ॥ -पस्यति प्रगटे छे, त्राटक योगे साची । हृदय कमलमां ध्यान, धरीने रहेशो राची ॥
शुद्ध विचारो प्रसवणा पण मगदे खाचा । पस्यति प्रगख्याथी, निर्मल साची वाचा !!