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विकासे ॥
नासे माया दूर, हृदयमां ब्रह्म प्रकाशे । परम भावनी ध्यान, दशामां हंस प्रेम मशाला दिल प्याला, ब्रह्म अमृत बुद्धिसागर ब्रह्मलीला, पामी निशदिन
प्रणव मंत्रथी निंदा, विकथा दोष टले छे । प्रणव मंत्री अष्ट, सिद्धिओ तुर्त मिले छे ||
प्रणव मंत्रथी संयम, शक्ति प्रगटे सारी । प्रणव मंत्रथी झलहल, ज्योति जग जयकारी ॥ प्रणव मंत्र ॐकार दिलमां ध्यावतां सुख भासतुं । बुद्धिसागर प्रणब मंत्रे, सत्य तत्व प्रकाशं ॥ ६ ॥ नाभिकमलमां प्रणव, मंत्रने प्रेमे स्थापो । स्थिरता अंतर्मुहुर्त, थवाथी टले बलापो ।
अखंड ज्योति झलके, झलहल सुरता साधे । बरसे समता नूर, आत्मानी शक्ति वाघे ॥ अखंड स्थिर उपयोग मांहिं, चैतन्य शक्ति दिनमणी । बुद्धिसागर अनुभवे त्यां, देह स्वामि जगधणी ॥ ७ ॥
नाभिकमलमां असंख्य प्रदेशी चेतन ध्यावो । चिदानंद भगवान इशने भावे भावो ॥
पीजीए । रीझीए ॥ ५ ॥
रुचक प्रदेशे अष्ट सिद्धसम निर्मल सारा । अष्टसिद्धि दातार, धरो मनमां सुखकारा ॥ आत्मसिद्धि प्राप्त करवा, ॐकार मनमां ध्याइए । बुद्धिसागर प्रणव मंत्रे, सिद्ध लीला पाइए ॥ ८ ॥
अगम्य शब्दातीत, प्रणवथी सहेजे मलशे । रजस तमोगुण दोष, प्रणवथी सहेजे टलशे ॥
सात्विक गुणनी वृद्धि, परंपर साश्वत लीला | निर्भय शुद्ध स्वरूप, रंगमां भव्य रसीला ॥ देव दानव भूत कोडी, प्रणवधी पाये पडे । बुद्धिसागर अकल निर्भय, तत्व मौक्तिक कर चडे ।। ९ ।।