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ॐकार स्तुति ।
ॐ नमः मंगल सुखकारी जग जयकारी । ॐ नमः मंगल पदनी जगमां बलिहारी ॥
ॐ नमः अजरामर, अनंत शक्ति विलासी । ॐ नमः परमेश्वर, शक्ति सय प्रकाशी ॥ ॐकार ध्याने आत्मशक्ति, प्रगटती जगमां खरी । बुद्धिसागर प्रणव मंगल, ध्यानथी सिद्धि वरी ॥ १ ॥
अगम निगमनो सार, प्रणव ॐकार विचारो । परब्रह्मनी शक्ति, खीलववा मनमां धारो ॥
चित्त दोषनो नाश, करे छे जाप कर्याथी । सात्विक शक्ति प्रगटावेछे, ध्यान धर्याथी ॥ अलख अगोचर रूप, वरवा प्रणव सरखो मंत्र छे । बुद्धिसागर सत्य निर्भय, देश वरवा यंत्र छे ॥ २ ॥ सम्यग् लही वाच्यार्थ, हृदयमां रटना धारो । अनंत कर्म कटाय, प्रणवथी चित्त विचारो ॥
सालंबन छे ध्यान, प्रणवनुं शास्त्रे भांख्युं । धरी प्रणवनुं ध्यान, योगिओए सुख चाख्यं ॥ ॐकार मंगल आद्य छे, जग श्वासोश्वासे ध्यायीए । बुद्धिसागर शिव सनातन, सिद्ध लीला पाइएं ॥ ३ ॥ हृदय कमलमां प्रणब स्थापना प्रेमे करीए । कोटि भवनां पाप, घडीमां क्षणमां हरीए ।
प्रगटे लब्धि चित्र, वचननी सिद्धि पावे | अंतर त्राटक सिद्ध करें ते स्थिरता पावे ॥ आत्मशक्ति खीलववाने, ॐकार अर्थ विवेक छे । बुद्धिसागर प्रणव मंगल, ध्यान साचो टेक छे ॥ ४ ॥
आनंद अपरंपार, हृदयमां झलके ज्योति | असंख्य प्रदेशी चिवन चेन परखे मोती ॥