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[ १ ] ब्रह्मा, विष्णु और हर शिवका स्वरूप भी, इस अक्षर में अन्तर्हित हुआ है । कारण कि इस पदमें जो 'अ' – 'र' और 'ह' यह तीन अक्षर हैं वे तीनों अनुक्रमसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के द्योतक हैं, ऐसा योगीजन मानते हैं। जैसा कि नीचे लिखे गए श्लोक में कहा गया है:एकारेणोच्यते विष्णुरेफे ब्रह्मा व्यवस्थितः । हकारेण हरः प्रोक्तस्तदंते परमं पदम् ॥
अर्थ :- 'अ' अक्षर विष्णुका वाचक कहलाता हैं रेफ याने 'र' अक्षर में ब्रह्माकी स्थिती है और 'ह' अक्षर में 'हर' अर्थात् शंकर - महादेव कहे जाते हैं । इस पदके शब्द के अन्तमें जो ऐसी चंद्रकला है वह परम पद- सिघशिलाकी द्योतक सूचक है । इसप्रकार अर्ह शब्द विष्णु आदिक लौकिक देवताओंका अभिधायक होने से वह रूभी आगम अर्थात् सभी धर्मोके सिद्धान्तोंका यह एक रहस्यभूत है एसा कहा जाता है। इसके उपरांत भर्ह पदकी महिमा और गूढार्थ है जिसका विबचन करने की कोई आवश्यक प्रतीत नहीं होती --
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सारांश यह है कि जो मनुष्य संयम और श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का यथोचित रीति से जप या ध्यान करते है उनके सभी मनोरथ सफल एवं पूर्ण होते हैं, इसमें किसी प्रकारका सन्देह नहीं ।
मंत्र पदों की सहायता से मनुष्य प्राणीके हरेक मनोरथ निःसन्देह सिद्ध होते हैं। मंत्रपदोंके द्वारा इच्छित फल प्राप्तिकी अभिलाषा रखनेवालोंको चाहिये के वे सदा र वेदा ॐ हिं अर्ह नमः
इस मंत्र पदका, शुभ भावनासे, श्रद्धापूर्वक, पवित्र भावसे, एकाग्रचित्त से, ध्यान करें और इह लोक तथा पर लोकमें सुखशांतिके भागी हों । यही हमारी आंतरिक मनो कामना है।
शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषा प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥
॥ ॐ श्री शान्ति ॥