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तर उनपर पुनरपि शंकायें लिखकर दे सकते हैं जिनका कि उत्तर द्वितीय दिवस दिया जावेगा । (८) प्रश्न के लिखित उत्तर प्रश्नकर्ताओंको सभामें व्याख्यानके साथ सुनाकर देदिये जायंगे और यदि उनके प्रश्न नियम विरुद्ध ! होंगे तो जिस समय लिये जावेंगे उसी समय लौटादिये जायेंगे । (८) प्रश्न. कर्ता महाशयों को अपना माननीय धर्म वा नामादि स्पष्ट अवश्यमेव लिखना चाहिये। (१०) सभामें कोई अनचित व असभ्य व्यवहार नहीं कर सकता
और न सभापति की प्राज्ञा विना कोई बोल ही सकता है ॥ ___ नोट--समयानुसार प्रोग्राम बदला भी जासकेगा ॥
प्रार्थी-घीसूलाल अजमेरा, मन्त्री-श्रीजैन कुमारसभा अजमेर,
आर्यसमाज अजमेरसे श्रीजैनतत्त्वप्रकाशिनी सभा छिपी हुई न थी। उस ने उसके प्रकाशित भार्यमतलीलादि ट्रैक्ट पढ़े थे। सभाके कार्यक्रम, दौरोंकी रिपोर्ट, शंका समाधानके पत्र और कई आर्यों को जैत्र बनालेने आदिका वि. वरण भी आर्यसमाज अजमेरसे अप्रगट न था उसके कृष्णलाल गुप्त आदि स. भासदोंने अपने आर्यमित्रमें प्रकाशित "नास्तिक मतके नमूने” श्रादि लेखोंका मुंह तोड़ उत्तर जैनमित्र श्रादि पत्रों में पढ़ा था । संक्षेपमें आर्यसमाज अजमेर को श्रीजैन तत्त्वप्रकाशिनी सभाको चढ़ी बढ़ी शक्ति सर्वथा प्रगट थी । उसको भय हुआ कि जब वही श्रीजैनतत्तत्र प्रकाशिनी सभा अजमेरमें श्रीजैन कुमार सभाके वार्षिकोत्सवमें आती है तो वह अवश्य ही प्रार्यसमाजका खयडन कर उसकी पोल सर्वसाधारणको दिखलावेगी जिससे कि बहुत सम्भव है कि पर्व ही चंगुल में आये हुए जैनकुमारोंकी भांति हमारे सत्यासत्य खोनी कई निष्पक्ष सभासद आर्यसमाजको तिलाञ्जलि दे जायं। इस भयसे अपनेको र. क्षित रखनेके अर्थ उसको बड़े सोच विचारके वाद एक चाल सूझी और वह यह थी कि प्रथमसे ही जैनियोंका ऊटपटांग खण्डन प्रारम्भ करदो जिससे कि उस खण्डनके खण्डन करने में ही जैन विद्वानों का सारा समय व्यतीत हो जाय और उनको आर्यसमाजका खण्डन करनेके अर्थ समय ही न मिले। प्रार्यसमाज इस युक्तिको सोचकर अतिहर्षित हुआ और उसने इसीके अनुसार स्वामी दर्शनामन्द जी सरस्वती आदि अपने विद्वानों को बुलाकर जैनधर्मका जिस तिस प्रकार खण्डन निम्न विज्ञापन निकलवा कर प्रारम्भ करवा दिया।