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(२८) महाशय ? इन झूठी बातों से अब कुछ नहीं बनेगा अच्छा हो कि हठ को छोड़कर सत्यको ग्रहण करें और सबके मालिक ईश्वस्पर विश्वास लायें, इसी में कल्याण है। ----अविडतजी हर समय आप लोगों के संशय मिटाने को तय्यार हैं। तारीख
- जयदेव शम्मी मन्त्री२-७-१२
.." मार्यसमाज, अजमेर
१. व्यावर के कंवर रामस्वरूप जी रानी वाले, वहां के दिगम्बर जैन सभा के सभ्यों और पञ्चों के अनुरोध से श्री जैन तत्त्व प्रकाशिनी सभा माग रात को व्यावर पधारी।
बुधवार ३ जुलाई १८१२ ईस्वी।
कलके "अब हट धमी से काम नहीं चलेगा,, शीर्षक भार्य समाज के विज्ञापन का उत्तर निन्न विज्ञापन द्वारा दिया गया।
वन्दे जिनवरम् * आर्य समाजी ढोलकी पोल
और उसको शास्त्रार्थका पुनःचैलेन्ज । .. सर्व साधारण प्रजनन महोदयोंकी सेवा में निवेदन है कि कल एक वि. जापन "अब हठ धर्मी से काम नहीं चलेगाशीक आर्य समाज की श्रोरसे निकला है जिनमें कि उसने सत्यको बिलकुल पास भी नहीं फटकने दिया है।
पपा मार्य समाज प्रा उत्तर देकर अपने स्वामीजीके बिषय से विषयान्तर होते हुए अपलंग करत जाने को ही प्रश्नाला उत्तर देना समझती है। यदि उसकी समझमें वादि गज केसरीजीके ईश्वरकी स्वाभाविक क्रिया में सष्टि कर्तृत्व और प्रलय कर्तृत्वके परस्पर विरोधी गुणाके दूषण का समाधान हो गया था तो क्यों नहीं उसने प्रवलिक के पापनार्थ "मानको मरम्मत,शीर्षक हमारे विज्ञापन में प्रकाशित उक्त का निराकरण हापा । छापती कैसे उसके छपते ही उसकी सारीपोल खुल जाती।
स्वामी दर्शनानन्द जी की इच्छानुसार ही शास्त्रार्थ मौखिक रक्खा गया
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