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॥ जाहिर खबर |
जैन साधु धर्मलाभ कहतेहैं, यहभी अनादि मर्यादा है परन्तु नई रीति नहींहै। वीरप्रभुके समय में नंदीषेण मुनि वैश्याके पाड़े में गौचरी गये तब धर्मलाभ कहाथा, उसके प्रति उत्तर में तुक मिलानेके लिये वैश्या ने अर्थलाभ कहाथा, यह बात प्रसिद्धही है । धर्मलाभ आशीर्वाद का वचनहै और दयापालो यह उपदेशका वचन है, आशीर्वाद और उपदेश के वचनोंकी ढूंढियोंको समझ नहींहै इसलिये हर समय सब जगह पर दयापालो कहा करतेहैं १, पहिलेके श्वेतवस्त्रवाले यतिलोग शुद्ध संयमी थे परंतु अभी बहुतसे यतिलोग आरंभ-परिग्रहवाले होगये और ढूंढिये लोग यतियों की निंदा करतेहुये जिनमूर्त्तिका भी उत्थापन करने लगे इसलिये यतियोंसे भिन्नता दिखलानेके लिये तथा अनादि जिनमूर्तिकी मान्यताकी रक्षाकरनेके लिये व शुद्धसंयम धर्मकी जगतमें महिमा बढाने के लिये संवेगी नाम रखकर शुद्ध संयमी साधुओंने पीलेवस्त्र किये हैं २, जिनराजके जन्माभिषेक, दीक्षा-केवलज्ञान-निर्वाण कल्याणक महोत्सव, नंदीश्वरद्वीपमें शाश्वतचैत्यों में अठ्ठाईमहीमा, जिनप्रतिमा की पूजादि धार्मिक कार्यों में देव-देवी- श्रावक-श्राविका आदिको छकाय की दया, १८ पापस्थानक सेवनका त्याग व जिनराजके अनंत गुणोंका स्मरण ध्यान होनेसे अशुभ कर्मोंकी निर्जरा, शुभ पुण्यानुबंधी पुण्यकी वृद्धि और मोक्ष की प्राप्तिहोती है ३, जिनप्रतिमाकी जल-चंदन-पुष्प आदि अष्ट प्रकारी पूजा में जीवहिंसाका पाप बतलाकर निषेध करनेवाले ढूंढिये-तेरहापंथियोंकी अनसमझ और प्रत्यक्ष अनंत लाभ की प्राप्ति ४, जिनमूर्ति-तीर्थयात्राकी मान्यता वीरप्रभुके मोक्ष पधारे बाद नई शुरु नहीं हुई है किंतु अनादिसेहै और इसका निषेध करनेवालों को छकायकी हिंसा, १८पापस्थानक सेवन करनेका पाप और जिनेश्वर भगवान् के गुणोंका स्मरण, परम वैराग्य, शुभभावना वगैरह महान् धर्म कार्योंकी अंतरायका दोष आता है५, जिनप्रतिमाके द्वेषसे ढूंढियाँने मूलसूत्रों में व रामचरित्र श्रीपाल चरित्रादिमें कैसे २ पाठ और अर्थ बदलकर नये २ कौन २ पाठ बनाकर डाले हैं६, चैत्य विवाद निर्णय ७, निक्षेप विवाद निर्णय ८, इत्यादि बातोंका तथा तेरद्दापंथियोंकी दया-दान विषयी सब शंकाओंका निर्णय है, इन सबका निर्णय " श्रीजिनप्रतिमाको वंदन-पूजन करनेकी अनादि सिद्धि ” नामा ग्रंथ में तथा " जाहिर उद्घोषणा नंबर ४-५-६” में लिखने में आवेगा ।