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जाहिर उदघोषणा न ० ३.
और गृहस्थ दातारको अप्रीति होनेसे सर्वज्ञ शासनकी लघुता होकर मिथ्यात्व बढे इत्यादि अनेक दोष आते हैं, इसलिये जिसको देनेके लिये जो वस्तु लावे वह उसीको देना उचित है, परंतु 'जिसको जरुरत होगी उसको ढुंगा' ऐसा सामान्य नियमसे कोई भी वस्तु लाकर हर एक साधुको देने में कोई दोष नहीं इसलिये भगवती सूत्र के उपरमें बतलाये पाठ के अनुसार तपस्वी, रोगी, नवदीक्षित, गुरु, आचार्य, उपाध्याय आदि सत्रको वस्त्र, पात्र, कंबल, दंडा, संत्थारा आदि उपकरण लाकर देने चाहिये | इनकी भक्तिसे बडी निर्जरा होती है ।
११०. व्यवहार सूत्रके आठवें उद्देश में भी स्थविर साधुको दंडा रखने लिखा है वहांभी स्थविरका प्रसंग होनेसे स्थविरका नाम बतलाया है परंतु निशीथ, आचारांग, दशवैकालिक' आदि आगम प्रमाणानुसार अन्य सर्व साधुओं को दंडा रखने का निषेध कभी नहीं हो सकता ।
१११ यदि ढूंढिये कहें कि दंडाले जीवोंकी हिंसा होती है जिससे दंडा शत्ररूप है, इसलिये रखना योग्य नहीं है, यहभी अनसमझकी बात है क्योंकि देखो हाथ, पैर, वस्त्र, पात्र, रजोहरण व दंडा आदि उपकरणोंसे उपयोग पूर्वक यत्नासे काम लिया जावे तो सब संयम धर्मके आधार भूत जीव दयाके हेतु हैं और बिना उपयोग अयत्नासे काम लिया जाये तो हाथ, पैर, रजोहरण आदिश्री जीव हिंसा करने वाले शस्त्ररूप होते हैं इसलिये सब उपकरणोंमें प्रमाद हिंसाका हेतु है और अप्रमाद जीव दयाका हेतु है जिसपर भी दंडाको हिंसा करने वाला शस्त्ररूप कह कर निषेध करने वाले ढूंढियों की बडी भूल है ।
११२. फिरभी देखिये किसी समय प्रमादवश किसीके रजोहरणसे भी जीव हिंसा हो जावे तो भी सर्व साधुओं के संयम धर्मका हेतु होने से रजोहरणका निषेध कभी नहीं हा सकता। इसी तरह से कभी प्रमादवश भूलसे किसी साधु के दंडासे भी कुछ हिंसा होजावे तोभी दंडा सर्व साधुओं के संयम धर्म की तथा शररिकी रक्षा करनेवाला होनेसे दंडा रखने का निषेध कभी नहीं होसकता जिसपरभी अज्ञानताले निषेध करने वाले सब ढूंढिये, तेरापन्थी उत्सूत्र प्ररूपक बनते हैं ।
१२३. ढूंढिये कहते हैं कि दंडा भय करनेवाला क्रोधमूर्त्तिका हेतु है इसलिये रखना योग्य नहींहै, यद्दभी अनसमझकी बात है क्योंकि खास ढूंढियेही वृद्ध साधु-साध्वियोंको दंडा रखना मान्य करते हैं। अब विचार