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जाहिर उद्घोषणा नं. ३. इसमें किया गयाहै इसलिये गृहस्थका चलाया हुआ मतको गच्छ कहना, उसीमें रहना, उसकी आज्ञा मुजब चलना यही सर्वथा जिनाशा विरुद्ध है।
___ ८६ यदि ढूंढिये कहेंगे कि उससमय श्वेतवस्त्र वाले सब यति हिंसाकरने वाले भ्रष्टाचारी होगयेथे, सञ्चा उपदेश देनेवाला-कोईनहीं रहाथा इसलिये लुकाजीने सञ्चा दयाधर्मका उपदेश देनेके लिये अपना नया मत चलायाहै. यह कथनभी सर्वथा झूठहै क्योंकि महावीर भग. वान् ने भगवती सूत्रके २०वें शतकके वे उद्देशमें फरमायाहै कि मेरा शासन २१००० हजार वर्षतक चलता रहेगा. इसीसे साबित होताहै कि पंचम आरके अंततक वीर भगवान्के शासन में शुद्धसाधु अवश्यही होते रहेंगे परंतु किसी समय शुद्ध साधुओका अभाव नहीं होगा, जि. ससे हरसमय (कभी बहुंत; कभी कम) संयमीसाधु मौजूदरहतेहैं उससे जिस समय लुकाजीने अपना नयामत चलाया उससमय शुद्ध संयमी सञ्चा उपदेश देनेवाले बहुत साधु विद्यमान विवरहतेथे जिसपरभी हूं. ढियेलोग सब श्वेतवस्त्र वाले साधुओं को हिंसाकरने वाले भूष्टाचारी ठहराते हैं सो सर्वथा प्रकारसे वीरप्रभूकी आज्ञा भंग करके प्रत्यक्ष उत्सूत्र प्ररूपणासे अपना संसार बढातेहैं और शुद्ध साधुओंको भ्रष्टाचारी असाधु ठहरानेरूप मिथ्यात्वकी प्ररूपणासे भोले जीवोंकोभी उन्मार्गमें डालनेके दोषी बनतेहैं।
८७. ढूंढिये कहते हैं कि 'भस्मग्रह उतरा और लुकाजीका दयाधर्म प्रसरा' याने- वीरभगवान् मोक्षपधारे तब भगवान्के जन्म नक्षत्रपर दोहजार वर्षकी स्थितीवाला भस्मग्रह बैठा था उससे भगवान्का दयाधर्म लुप्त होगयाथा हिंसाधर्म बढ गयाथा जिससे भस्मग्रह उतरा तब लुकाजीने पीछा दयाधर्मका प्रचार किया, ढूंढियोंका यह कथनभी सर्वथा जिनाझा विरुद्धहै क्योंकि देखो जैनशास्त्रोंमें यह प्रसिद्धही बात है कि- नवमें भगवान् श्रीसुविधिनाथ स्वामी मोक्षपधारे बाद कितनाही समय जानेपर साधुओंका सर्वथा अभाव होगया तब गृहस्थ श्रावक लोग धर्मका उपदेश देनेलगे, उन्होंकी परंपरामें लोभ आदिसे शुद्ध धर्मका लोपहोकर मिथ्यात्व फैलगया जिससे असंयति ( पाखंड) पूजारूप अच्छेरा मानागया है, उसके बाद दशवं भगवान श्रीशीतलनाथ स्वामीने दीक्षालेकर केवलज्ञान प्राप्त करके शुद्धधर्मकी प्रवृत्ति,फिर