________________
(किताब-न्यायरत्न-दर्पण.)
(जिसको.) जैनश्वेतांबर धर्मापदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शातिविजयजीने फायदे
आमके मुरतिब किइ.
इसमे जहोरी दलिपसिंहजी साकीन कलकताके पत्र और सात सवालोके जवाब दर्ज है
(दोहा.) नमुदेव अरिहंतको, गुरु नमु निग्रंथ; स्याबादवानी नमुं, यही मुक्तिका पंथ. १ जैनश्वेतांबर मजहबमें इस वख्त, तपगछ, कलगछ, खरतरगछ, अंचलगछ, पार्धचंद्रगछ, लोकागछ और विजयगछ वगेरा कई भेद मौजूद है, चुनाये ! में खुद तपगछ समुदायमें हुं लेकिन ! मेरे सामने सब गछके श्रावक आतेजाते है, और. फायदा धर्मका हासिल करते है. संवत् (१९३६) वैशाख सुदी दशमी मिथुन लग्नके वख्त मुल्क पंजाबमें जबसे मेने दिक्षा इख्तियार किई मुल्कोकी सफर करना शुरु किया, वीश वर्ष तक पैदल विहारसे मुल्क पंजाब, मारवाड, मेवाड, गुजरात, राजपुताना, मालवा वगेरामें फिरना हुवा. संवत् (१९५६) में जब मैरा चौमासा शहर लखनऊमें हुवा और वहांसे जब तीर्थसमेतशिखरकी जियारतको जानेकी तयारी किइ, आगे रैलमें बैठकर सफर करना शुरु किया, वीश