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न्यायरलदर्पण. अगर कोई जैनमुनि शौखसे रैलमें बेठकर मुल्कोकी सफर करे तो बेशक! पाप है. और उसकी मुमानियतभी है, क्योंकि ईरादा उनका धर्मपर नहीं रहा. ___ आगे इसीसातवे सवालमे जहोरी दलिपसिंहजीने लिखा है इसके आलावे रैलमें बैठनेवाले जैनमुनिकों टिकिटखर्चकी चिंता स्त्रीसंघटा रात्रीविहार दीपकका ऊजाला सुखशीलता प्रमाद ग्रामोके चैत्यदर्शनका अभाव वहाँके श्रावकोंकों धर्मोपदेशकी अंतराय तथा टेशनपरसे घोडे गाडीपर सवार होकर रात्रीकों गांवमें जाना, बेटाइमपर गौचरीका अभाव वगेरा दोषोका कारण क्यों करते हो ? सो कृपा करके सब बातका स्पष्ट खुलासा लिखियेगा. _ (जवाब.) सब बातका स्पष्ट खुलासा लिखताहुं सुनिये ! रैलविहारी जैनश्वेतांवर मुनियोके लिये आदमी भेजकर टिकिटखर्चका बंदोबस्त श्रावक लोग करते है, निस्पृही सत्यवक्ता और अपने पूर्वकृत कर्मपर भरुसा रखनेवालोके सब काम ठीक ठीक तौरसे हुवा करते है, जो जो जैनश्वेतांबरमुनि पेतालिस आगमके पुरेजानकार और पंडित है, उनको हरजगह भक्ति करनेवाले श्रावकलोग मिलते है, ज्ञान एक ऐसी उमदा चीज है कि उसकी हरेक सख्सकों जरुर पडती है. इस लिखनेका मतलब यह है कि ज्ञान एक पूजनीक गुण है, दुसरीबात यह है कि हरेक बख्शको अपने लाभांतराय कर्मके दुढनेपर योग्य चीज मीलती है, जैनशाखमें लिखा है कि:..अंतरायक्षयादेव, लाभो भवति नान्यथा; ततश्च वस्तुतत्वज्ञो, नो लाभमदमुद्वहेत्. १
इसका मतलब यह हुषा कि अपने लाभांतरायकर्मके क्षयसे जीवको योग्य चीज मिलती है इस लिये पदार्थज्ञानको जाननेवाले