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न्यायरत्न दर्पण.
जिसको जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न महाराज-शांतिविजयजीने मुरतिब किया...
मुकाम-सीरपुर-खानदेश. इसमें जहोरी दलिपसिंहजी-साकीन कलकताके पत्र और सवालोके जवाब दर्ज है.
जिसकों शेट भीखचंदजी भादाजी साकीन पाचोरा मुल्क खानदेशने फायदे जैन श्वेतांवरसंघके छपवाकर जाहिर किया.
प्रथमावृति (२५००)
(दोहा.) परालब्ध पहले बनी-पिछे बना शरीर, तोभी यह आश्चर्य है-मनुष्य न धारे धीर. १ को सुख को! दुख देत है-देत कर्म झकझोर, उरजत सुरजत आपही-धजा पवनके जोर. २
अहमदाबाद. धी “ डायमंड ज्यूबिली” प्रिन्टिग प्रेसमें परीख देवीदास छगनलालने छापा.
संवत् १९७२.
सन् १९१५०