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परिच्छेद.]
भवदत्त और भवदेव.
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होने लगा, कुछ समय के बाद ' सागरदत्तकुमार बोलनेको समर्थ हुआ और सुवर्णके दंडेका सहारा लेकर उठने बैठने लगा, इस प्रकार बढ़ता हुआ तथा मित्र जनोंके साथ क्रीड़ा करता हुआ सागरदत्तकुमार ' विद्याभ्यास करनेके योग्य हुआ, राजाने भी अच्छे प्रवीण कलाचार्यको बुलाकर ' सागरदत्त' को कलाभ्यास करने के लिए सुपूर्द कर दिया ।
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'सागरदत्तकुमार' ने थोड़ेही समयमें कलाचार्य के पाससे इसतरह कलायें ग्रहण कर लीं जैसे मुसाफ़िरजन कूवेसे पानी ग्रहण कर लेता है । 'सागरदत्त' पुरुषकी संपूर्ण कलायें ग्रहण करके चंद्रमा के समान सब जनोंके नेत्रारविंदों को आनंदित करता हुआ योवनावस्थाको प्राप्त हुआ, ' व्रजदत्त' चक्रवर्तीने सागरदत्तकुमार के योग्य बहुतसी राजकन्याओंका पाणीग्रहण उसके साथ करा दिया, उन राजकन्याओंके साथ ' सागरदत्त' संसार संबंधिसुखोंका अनुभव करता है ।
एक दिन वर्षाऋतु में अपने महलके ऊपर 'सागरदत्त' अपनी स्त्रियोंके साथ क्रीड़ा कर रहा था उस समय आकाशमें एकदम मेरु पर्वतके समान और तद्वत आकारवाला मेघमंडल चढ़ आया, उसकी सुन्दरताको देखकर ' सागरदत्त' विचारने लगा कि देखो कैसी इसकी रमणीयता है । जैसा वरनन शास्त्रोंमें मेरु पर्वतका किया है, वैसेही आकारवाला यह मेघमंडल देख पड़ता है, इसका सौन्दर्य कोई अजबही ढंगका मालूम होता है । 'सागरदत्त' उस मेघमंडल में एकाग्रदृष्टी लगाकर उसके सौन्दर्यकी विचित्रताको देख रहा था इतनेमेंही प्रचंड वायुके जोरसे वह अभ्रमंडल पानीके 'बुदबुद ' के समान वहां परही नष्ट हो गया, 'सागरदत' की दृष्टी वहांही लगी हुईथी उस मेघमंडलकी ऐसी दशा देखकर अल्पकम