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-* तीसरा परिच्छेद ॥
सागरदत्त और शिवकुमार.
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धर 'भवदत्त' का जीव स्वर्गसे चल कर महाविदेह क्षेत्रकी पुष्कलावती विजयमें 'पुंडरीक' नामकी नगरीमें 'बजदत्त' नामा चक्रवर्तीकी पटरानी 'यशोधरा' की कुक्षीमें पुत्रपने अव
तरा । 'भवदत्त के जीवको 'यशोधरा' की कुक्षीमें आनेसे 'यशोधरा' को समुद्रमें स्नान करनेका दोहला उत्पन्न हुआ, 'व्रजदत्त' चक्रवर्तीने समुद्रके सदृश 'सीता' नामकी नदीमें कीड़ा कराकर 'यशोधरा' का दोहला पूर्ण किया, अब पूर्ण मनोरथा देवी यशोधरा सुखसे समयको व्यतीत करती हुई वर्षाकालकी लताके समान लावण्यको धारण करती है । नव मास पूर्ण होनेपर 'यशोधरा देवीने अद्भुत रूपवाले पुत्रको जन्म दिया, ' यशोधरा' को गर्भ होते समय सागरमें स्नान करनेका दोहला उत्पन्न हुआथा इसलिएही 'व्रजदत्त' राजाने उस पुत्रका नाम 'सागरदत्त' रक्खा देवकुमारके समान 'सागरदत्त' को पाँच धायमातायें बड़ी प्रीतिपूर्वक पालती हैं, 'सागरदत्त' कुमार नन्दन वनकी भूमिमें कल्पवृक्षके अंकूरके समान वृद्धिको प्राप्त