________________
परिच्छेद . ] प्रसन्नचंद्र राजर्षि और वल्कलचीरी.
२५
आश्चर्यजनक तथा परम पवित्र चरित्र सुना चुके तब श्रेणिक राजाने आकाश से उतरते हुए देवताओंको देखा और हाथ जोड़कर भगवानसे पूछा कि हे भगवन्! आकाशसे यह देवसंपात क्यों होरहा है ? भगवान महावीरस्वामी बोले कि हे राजन् ! जिस “ प्रसन्नचंद्र " राजर्षिका चरित्र सुना है उसी प्रसन्नचंद्रको केवलज्ञान हुआ है और उसके केवलज्ञानकी महिमा करनेके लिए ये देवतालोग आकाशसे उतर रहे हैं ।
विक्रम संवत् १९७२ में झघड़िया तीर्थपर श्रीआदीश्वर भगवान की कृपासे यह " वल्कलचीरी " महात्माका परम पवित्र चरित्र आज मगसिर सुदी तृतीयाके दिन समाप्त हुआ । अब श्रीजंबुस्वामीका चरित्र शुरु होता है ।