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-*॥ दूसरा परिच्छेद ॥- 8.
भवदत्त और भवदेव.
___ म हात्मा वल्कलचीरी तथा श्रीप्रसन्नचंद्र राजर्षिका
चरित्र जब भगवान श्रीमहावीरस्वामी कह चुके Penis तब श्रेणिक राजाने भगवानसे फिर प्रश्न किया कि
हे भगवन् ! आपके शासनमें अन्तिम केवलज्ञानी कौन होगा ? भगवान बोले हे राजन् ! यह जो तेरे सामने समवसरणमें ब्रह्मदेवलोकमें रहनेवाला इंद्रके समान ऋद्धिवाला और चार देवियों सहित विद्युन्माली, नामका देव बैठा है, यह आजसे सातवें दिन देवसंबंधि आयुको पूर्ण करके तेरेही नगरमें “ऋषभदत्त" नामा शेठके यहां, जंबु नामा पुत्रपने उ-. त्पन्न होकर अन्तिम केवली होगा । श्रेणिक बोला हे स्वामिन् ! यदि इस देवका आजसे सातवें दिन चवन है तो इसका इतना अक्षीण तेज क्यों मालूम होता है ? क्योंकि देवताओंका तेज चवनसे ६ मास पहलेही क्षीण होजाता है परंतु यह देव तो बड़ाही तेजस्वी देख पड़ता है । जगद्गुरु भगवान बोले कि राजन् ! एकही भव धारण करके मुक्ति प्राप्त करनेवाले देवताओंके तेज क्षयादि चवनके चिन्ह अंतकालतकभी नहीं बदलते । जिस वक्त भगवान महावीरस्वामी “श्रेणिक राजा" से कह रहेथे उस समय जंबुद्दी