________________
२४ परिशिष्ट पर्व.
[पहला चीरी" को जाति स्मृति ज्ञान उत्पन्न होगया । अब “वल्कलचीरी" . जाति स्मृति ज्ञानसे अपने देव तथा मनुष्य संबंधि भवोंको प्रत्यक्ष देखने लगा, पूर्वभवमें जो साधुपना पालाथा तथा जिनेश्वर देवके धर्मकी जो आराधना की थी उसको देखकर वल्कलचीरी, परम वैराग्य रसमें मग्न होगया और भवको नाश करनेवाली भावनायें भाने लगा । इसतरह भावनामें रूढ होकर "वल्कलचीरी" ने धर्मध्यानको व्यतिक्रमण कर और शुक्ल ध्यानमें स्थित होकर लोकालोकको प्रकाश करनेवाले तथा चराचर पदार्थोंको जनानेवाले केवल ज्ञान और केवल दर्शनको प्राप्त कर लिया। तत्कालही देवताओंने यतिवेष देकर केवलज्ञानकी महिमा की, सर्व परियायों सहित सर्व पदार्थों को जाननेवाले केवलज्ञानी महात्मा "वल्कल. चीरी" ने पिता तथा भाईकी अनुकंपासे सुधाके समान धर्म देशना दी, केवलज्ञानी महात्माकी धर्मदेशना सुनकर सोमचंद्र तथा प्रसन्नचंद्रको यथार्थ बोध हुआ और महात्मा वल्कलचीरीको भक्तिपूर्वक नमस्कार कर श्रावकधर्मको अंगीकार करके राजा प्रसन्न चंद्र, तो अपने स्थानपर चला गया । भगवान महावीरस्वामी "श्रेणिक" राजासे कह रहे हैं कि हे राजन् ! उस समय हमभी विहार करते हुए पोतना नगरके उद्यानमें समवसरे । प्रत्येकबुद्ध महात्मा वल्कलचीरी, अपने पिताको दीक्षा देकर हमारे पास छोड़कर अन्यत्र विहार कर गया और "प्रसन्नचंद्र" भी “वल्कलचीरी" की देशनासे स्थिर वैराग्यवान हुआ हुआ पोतनापुर नगरको चला गया । कुछ दिनोंके बाद विरक्तात्मा राजा "प्रसन्नचंद्र" ने अपने छोटेसे पुत्रको राज्यभार देकर हमारे पास आकर दीक्षा ग्रहण कर ली।
जब भगवान महावीरस्वामी, "प्रसन्नचंद्र राजर्षि" का