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परिशिष्ट पर्व.
ग्यारवाँ.
खुर गोल आकारवाले होने चाहिये, निर्मास जानु (जंघा ) होनी चाहिये, मुँह बड़ा पतला होना चाहिये, कंधरा ऊंची होनी चाहिये, काँन छोटे होने चाहिये, गरदनकी केशरायें लंबी होनी चाहियें, शरीरके रोम बहुत कोमल और चिकने होने चाहियें । इत्यादि जो शास्त्रोक्त लक्षण हैं उन सर्व लक्षणोंसे यह 'अश्व' संपन्न है, इतनाही नहीं बल्कि इसके शरीर में एक लक्षण ऐसा प्रशस्त है कि जिसके प्रभाव से इसके स्वामिकी संपदा प्रतिदिन वृद्धिगत होगी । राजाको घोड़े खरीदने का बड़ा सौख था, इस लिए वह स्वयंही घोड़ों की परिक्षामें बड़ा दक्ष था । राजाने बहुतसा द्रव्य देकर उस बछेरेको खरीद लिया और निर्मल जल से स्नान कराके फलफूलादि पूजा की सर्व सामग्री मँगवाकर अपने हाथ से उसकी पूजा की । अब राजाके मनमें यह चिन्ता हुई कि इस अश्व, रत्नकी रक्षा कौन करेगा क्योंकि प्रायः 'अपाय बहुलानि रनानि भूतले' अर्थात् भूमितलमें ऐसी रत्न वस्तुयें बहुत कष्टयुक्त होती हैं, इस लिए इस रत्नकी रक्षा करनेवाला कोई ऐसा पुरुष होना चाहिये जो अपने प्राणोंसे भी अधिक इसकी रक्षा करे, इस प्रकार विचार करते हुवे राजाने सोचा । इस वक्त ' जिनदास' के समान विश्वासपात्र और कोई मुझे नहीं देख पड़ता, क्योंकि यह मेरा पूर्ण भक्त है और श्रावकों में भी यह अग्रणी और सदाचारी है, इस लिए ऐसे रत्नकी रक्षा करनेके योग्य 'जिनदास ' सिवाय अन्य कोई नहीं नजर आता । यह विचार के राजाने 'जिनदास' श्रावकको बुलवाया और बड़ी प्रसन्नतापूर्वक उसको अपने पास बैठाके कहा कि जिनदास ! मेरे आत्माके समान तूने हमेशा अप्रमत्त होकर इस 'बछेरे' की रक्षा करनी । 'जिनदास' हाथ जोड़ के राजाकी आज्ञाको मस्तकपर चढ़ा बड़ी