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परिच्छेद.] जातिमान अश्व और मूर्ख लड़का. १३९ धूमधामसे उसे अपने घरपर ले मया और ऐसे स्थानपे रक्खा जहां किसी भी प्रकारका भय नहीं । 'जिनदास' ने उस अश्वके रहनेकी जगह वालू रेता गेरके ऐसी तो कोमल बना दी कि मानो मखमलकी शय्याही न हो, अब प्रतिदिन जब आप स्नान करता है तब उस 'अश्व' को भी स्नान कराता है और अपने हाथसे हरित रिजकेकी पत्तियां खिलाता है । यह निरोगी है या नहीं अथवा इसे कोई रोग न होजाय इस चिन्तासे प्रतिदिन उसकी आँखोंकी पक्ष्मणी (पलक) उठा उठाकर देखता है और हमेशा उसपे चढ़कर नगरसे बाहर सरोवरमें उसे पानी पिला लाता है । 'जिनदास' जब उसपर चढ़कर उसे पानी पिलानेको लेजाता तब प्रथम धारासेही चलता था । नगर और सरोवरके मध्य भागमें एक बड़ा भारी जिनालय (जिनमंदिर) था उस जिनालयके पास होकरही सरोवरको रास्ता जाता था, इस लिए जिनेश्वर देवकी मुझसे अवज्ञा न हो यह विचारके 'जिनदास' उस अश्वपे चढ़ा हुआ आते और जाते समय उस जिनालयकी प्रदक्षिणा दिया करता था । घोड़ेसे उतरके इस लिए मंदिरमें नहीं प्रवेश करता था, उसके मनमें घोड़ेकी तरफसे बहुत फिकर रहता था।
इस प्रकार सावधान होकर उस घोड़ेकी रक्षा करते हुए "जिनदास' को कै वर्ष व्यतीत हो गये । ज्यों ज्यों चह घोड़ा - द्धिको प्राप्त होता है त्यों त्यों राजाकी राज्यलक्ष्मी भी वृद्धिको माप्त होने लगी। थोड़ेही वर्षोंमें नतीजा यह निकला कि उस घोड़ेके प्रभावसे उस देशवासि सर्व राजाओंने उस राजाकी आज्ञा अपने मस्तकपर चढ़ाई । परन्तु किसीने खुशीसे और किसीने जबरदस्ती। जो राजा प्रथम इस राजाकी अपेक्षा अधिक सत्तावाले थे अब उन्हें