________________
-
मोक्षाधिकार
एवम्हि सावराहो बज्झामि अहं तु संकिदो चेदा। जइ पुण णिरावराहो णिस्संकोहं ण बज्झामि ।।
अपराध चौर्यादिक करें जो पुरुष वे शंकित रहें। कि चोर है यह जानकर कोई मुझे ना बाँध ले॥ अपराध जो करता नहीं नि:शंक जनपद में रहे। बँध जाऊँगा ऐसी कभी चिन्ता न उसके चित रहे। अपराधि जिय 'मैं बंधूंगा' इसतरह नित शंकित रहे।
पर निरपराधी आतमा भयरहित है नि:शंक है। जो पुरुष चोरी आदि अपराध करता है, वह कोई मुझे चोर समझकर पकड़ न ले' - इसप्रकार शंकित होता हुआ लोक में घूमता है।
जो पुरुष अपराध नहीं करता है, वह लोक में निःशंक घूमता है; क्योंकि उसे बँधने की चिन्ता कभी भी उत्पन्न नहीं होती।
इसीप्रकार अपराधी आत्मा 'मैं अपराधी हैं, इसलिए मैं बंधूंगा' - इसप्रकारशंकित होता है और यदि वह निरपराध हो तो 'मैं नहीं बँधूंगा' - इसप्रकार निःशंक होता है।
(३०४-३०५) संसिद्धिराधसिद्धं साधियमाराधिय च एयटुं। अवगदराधो जो खलु चेदा सो होदि अवराधो॥ जो पुण णिरावराधो चेदा णिस्संकिओ उ सो होइ। आराहणाइ णिच्चं वट्टेइ अहं ति जाणंतो।।
साधित अराधित राध अर संसिद्धि सिद्धि एक है। बस राध से जो रहित है वह आतमा अपराध है। निरपराध है जो आतमा वह आतमा नि:शंक है।
'मैं शुद्ध हूँ' - यह जानता आराधना में रत रहे। संसिद्धि, राध, सिद्ध, साधित और आराधित -ये शब्द एकार्थवाची
.
.
.
..
..
-
.
-