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- गाथा समयसार अप्रतिक्रमण दो प्रकार का है। इसीप्रकार अप्रत्याख्यान भी दो प्रकार का जानना चाहिए। इस उपदेश से आत्मा अकारक कहा गया है।
अप्रतिक्रमण दो प्रकार का है - द्रव्यसंबंधी अप्रतिक्रमण और भावसंबंधी अप्रतिक्रमण । इसीप्रकार अप्रत्याख्यान भी दो प्रकार का है -द्रव्यसंबंधी अप्रत्याख्यान और भावसंबंधी अप्रत्याख्यान । इस उपदेश से आत्मा अकारक कहा गया है। ..
जबतक आत्मा द्रव्य का और भाव का अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यान करता है; तबतक वह कर्ता होता है - ऐसा जानना चाहिए।
(२८६-२८७) आधाकम्मादीया पोग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा। कह ते कुव्वदि णाणी परदव्वगुणा दुजे णिच्चं ।। आधाकम्मं उद्देसियं च पोग्गलमयं इमं दव्वं । कह तं मम होदि कयं जं णिच्चमचेदणं वुत्तं ।।
अध:कर्मक आदि जो पुद्गल दरब के दोष हैं। परद्रव्य के गुणरूप उनको ज्ञानिजन कैसे करें ?|| उद्देशिक अधःकर्म जो पुद्गल दरबमय अचेतन।
कहे जाते वे सदा मेरे किये किस भाँति हों?॥ अध:कर्मादि जो पुद्गल द्रव्य के दोष हैं; उन्हें ज्ञानी (आत्मा) कैसे करे ? क्योंकि वे तो सदा ही परद्रव्य के गुण हैं।
पुद्गलद्रव्यमय अध:कर्म और उद्देशिक मेरे किये कैसे हो सकते हैं? क्योंकि वे सदा अचेतन कहे गये हैं।
(सोरठा) अग्निरूप न होय, सूर्यकान्तमणि सूर्य बिन। रागरूप न होय, यह आतम परसंग बिन ||१७५||
-समयसार कलश पद्यानुवाद