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गाथा समयसार यदि सभी जीव कर्म के उदय से सुखी-दुःखी होते हैं और तू उन्हें कर्म तो देता नहीं है; तो तूने उन्हें सुखी-दु:खी कैसे किया ? ___ यदि सभी जीव कर्म के उदय से सुखी-दुःखी होते हैं और वे तुझे कर्म तो देते नहीं हैं, तो फिर उन्होंने तुझे दुःखी कैसे किया ? ___ यदि सभी जीव कर्म के उदय से सुखी-दु:खी होते हैं और वे तुझे कर्म तो देते नहीं हैं; तो फिर उन्होंने तुझे सुखी कैसे किया ?
(२५७-२५८) जो मरदि जोय दुहिदो जायदि कम्मोदएण सो सव्वो। तम्हा दु मारिदो दे दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा। जोण मरदिण य दुहिदोसो विय कम्मोदएण चेव खलु। तम्हा ण मारिदो णो दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा ।।
जो मरे या जो दुःखी हों वे सब करम के उदय से। 'मैं दुःखी करता-मारता' - यह बात क्यों मिथ्या न हो? | जो ना मरे या दुःखी ना हो सब करम के उदय से।
'ना दुःखी करता मारता' - यह बात क्यों मिथ्या न हो। • जो मरता है और जो दु:खी होता है, वह सब कर्मोदय से होता है; इसलिए मैंने मारा, मैंने दुःखी किया' - ऐसा तेरा अभिप्राय क्या वास्तव में मिथ्या नहीं है ?
जो मरता नहीं है और दुःखी नहीं होता है, वह सब भी कर्मोदयानुसार ही होता है; इसलिए मैंने नहीं मारा, मैंने दुःखी नहीं किया' - ऐसा तेरा अभिप्राय क्या वास्तव में मिथ्या नहीं है ?
(२५९ से २६१) एसा दुजा मदी दे दुक्खिदसुहिदे करेमि सत्ते त्ति । एसा दे मूढमदी सुहासुहं बंधदे कम्मं ।। दुक्खिदसुहिदे सत्ते करेमि जं एवमज्झवसिदं ते। तं पावबंधगं वा पुण्णस्स व बंधगं होदि।।