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बंधाधिकार मुझे जिलाते हैं; वह मूढ़ है; अज्ञानी है और जो इससे विपरीत है अर्थात् ऐसा नहीं मानता; वह ज्ञानी है।
जीव आयुकर्म के उदय से जीता है - ऐसा सर्वज्ञदेव कहते हैं। तू परजीवों को आयुकर्म तो देता नहीं है; फिर तूने उनका जीवन कैसे किया?
जीव आयुकर्म के उदय से जीता है - ऐसा सर्वज्ञदेव कहते हैं। परजीव तुझे आयुकर्म तो देते नहीं है; फिर उन्होंने तेरा जीवन कैसे किया?
(२५३ से २५६) जो अप्पणा दुमण्णदिदुक्खिदसुहिदे करेमि सत्तेत्ति। सो मूढो अण्णाणी णाणी एत्तो दु विवरीदो। कम्मोदएण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे। कम्मं च ण देसि तुमं दुक्खिदसुहिदा कह कया ते॥ कम्मोदएण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे । कम्मं च ण दिति तुहं कदोसि कहं दुक्खिदो तेहिं ।। कम्मोदएण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे । कम्मं च ण दिति तुहं कह तं सुहिदो कदो तेहिं। मैं सुरखी करता दुःखी करता हूँ जगत में अन्य को। यह मान्यता अज्ञान है क्यों ज्ञानियों को मान्य हो?|| हैं सुखी होते दुःखी होते कर्म से सब जीव जब । तू कर्म दे सकता न जब सुख-दुःख दे किस भाँति तब॥ हैं सुखी होते दुःखी होते कर्म से सब जीव जब | दुष्कर्म दे सकते न जब दुःख-दर्द दें किस भाँति तब ॥ हैं सुखी होते दु:खी होते कर्म से सब जीव जब ।
सत्कर्म दे सकते न जब सुख-शांति दें किस भाँति तब || जो यह मानता है कि मैं स्वयं परजीवों को सुखी-दु:खी करता हूँ; वह मूढ़ है, अज्ञानी है और जो इससे विपरीत है; वह ज्ञानी है।