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-गाथा समयसार
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सद्ज्ञान प्रतिबंधक करम अज्ञान जिनवर ने कहा । उसके उदय से जीव अज्ञानी बने यह जानना || चारित्र प्रतिबंधक करम जिन ने कषायों को कहा। उसके उदय से जीव चारित्रहीन हो यह जानना ||
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सम्यक्त्व का प्रतिबंधक मिथ्यात्व है - ऐसा जिनवरों ने कहा है । उसके उदय से जीव मिथ्यादृष्टि होता है; ऐसा जानना चाहिए ।
ज्ञान का प्रतिबंधक अज्ञान है - ऐसा जिनवरों ने कहा है। उसके उदय से जीव अज्ञानी होता है; ऐसा जानना चहिए ।
चारित्र की प्रतिबंधक कषाय है - ऐसा जिनवरों ने कहा है । उसके उदय से जीव अचारित्रवान होता है; ऐसा जानना चाहिए ।
( शार्दूलविक्रीडित )
संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि तत्कर्मैव मोक्षार्थिना संन्यस्ते सति तत्र का किल कथा पुण्यस्य पापस्य वा । सम्यक्त्वादिनिजस्वभावभवनान्मोक्षस्य हेतुर्भवन् नैष्कर्म्यप्रतिबद्धमुद्धतरसं ज्ञानं स्वयं धावति । । १०९ । ।
( हरिगीत )
त्याज्य ही हैं जब मुमुक्षु के लिए सब कर्म ये । तब पुण्य एवं पाप की यह बात करनी किसलिए ॥ निज आतमा के लक्ष्य से जब परिणमन हो जायगा ।
निष्कर्म में ही रस जगे तब ज्ञान दौड़ा आयगा ।। १०९ ।। मोक्षार्थियों के लिए समस्त ही कर्म त्याग करने योग्य हैं । जब यह सुनिश्चित है, तब फिर पुण्य और पाप कर्मों की चर्चा ही क्या करना; क्योंकि सभी कर्म त्याज्य होने से पुण्य भला और पाप बुरा - यह बात ही कहाँ रह जाती है ? ऐसी स्थिति होने पर सम्यक्त्वादि निजस्वभाव के परिणमन से मोक्ष की कारणभूत निष्कर्म अवस्था का रसिक ज्ञान स्वयं ही दौड़ा चला आता है । - समयसार कलश पद्यानुवाद