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पुण्य-पापाधिकार
जिसप्रकार कपड़े की सफेदी मैल के मिलने से नष्ट हो जाती है, तिरोभूत हो जाती है; उसीप्रकार मिथ्यात्वरूपी मैल से लिप्त होने पर सम्यक्त्व तिरोहित हो जाता है - ऐसा जानना चाहिए।
जिसप्रकार कपड़े की सफेदी मैल के मिलने से नष्ट हो जाती है, तिरोभूत हो जाती है, उसी प्रकार अज्ञानरूपी मैल से लिप्त होने पर ज्ञान तिरोभूत हो जाता है - ऐसा जानना चाहिए।
जिसप्रकार कपड़े की सफेदी मैल के मिलने से नष्ट हो जाती है, तिरोभूत हो जाती है, उसी प्रकार कषायरूपी मैल से लिप्त होने पर चारित्र तिरोभूत हो जाता है - ऐसा जानना चाहिए।
. (१६०) सो सव्वणाणदरिसी कम्मरएण णियेणावच्छण्णो। संसारसमावण्णो ण. विजाणदि सव्वदो सव्वं ।।
सर्वदर्शी सर्वज्ञानी कर्मरज आछन्न हो।
संसार को सम्प्राप्त कर सबको न जाने सर्वतः। - यद्यपि वह आत्मा सबको देखने-जानने के स्वभाववाला है; तथापि अपने कर्ममल से लिप्त होता हुआ, संसार को प्राप्त होता हुआ; सर्वप्रकार से सबको नहीं जानता।
(१६१ से १६३) सम्मत्तपडिणिबद्धं मिच्छत्तं जिणवरेहि परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो मिच्छादिट्टि त्ति णादव्वो। णाणस्स पडिणिबद्धं अण्णाणं जिणवरेहि परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो अण्णाणी होदि णादव्वो। चारित्तपडिणिबद्धं कसायं जिणवरेहि परिकहियं । तस्सोदयेण जीवो अचरित्तो होदि णादव्वो।।
सम्यक्त्व प्रतिबंधक करम मिथ्यात्व जिनवर ने कहा। उसके उदय से जीव मिथ्यादृष्टि होता है सदा ।।